मेरी आवारगी

मेरे लिए तो रीगल कब का बन्द हो गया : प्रशांत वर्मा

दरअसल रीगल 31 मार्च को औपचारिक रूप से बंद हुआ है अनौपचारिक रूप से बहुत पहले बंद हो गया था.
बाकि ये शहर आपको उस तरह से खुद को नहीं जोड़ता जैसे आप भोपाल, इंदौर, उज्जैन, बरेली, इलाहाबाद जैसे शहरों से जुड़ते हो.
रीगल के बंद होने को देखता हूं तो मुझे हमारे कस्बों के उन सिनेमाघरों की याद आती है जो ठीक से शुरू भी नहीं हुए थे कि बंद हो गए.
ऐसे न जाने कितने थिएटर शुरू हुए और बंद हो गए लेकिन उनकी बात करने वाला कोई नहीं था.
छोटे शहरों का मनोरंजन ख़त्म हो गया.
रीगल का बंद हो जाना ठीक वैसा ही है जैसा दिल्ली की किसी घटना का राष्ट्रीय स्तर का बन जाना और सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर दिन भर चलते रहना.
रीगल को लेकर तुम मुझे निर्दयी और क्रूर कह सकते हो लेकिन शायद मेरी बात को काट नहीं सकोगे.
क्योंकि दिल्ली शहर को खुद इसके बंद होने का अफ़सोस नहीं था. किसी ने नहीं कहा कि भाई मैं इसे बंद नहीं होने दूंगा.
कोई संस्था या सक्षम व्यक्ति नहीं आया जो कहे कि मैं रीगल को बंद नहीं होने दूंगा बल्कि इसे मैं चलाऊंगा.
उल्टा लोगों ने उसके बंद होने के दिन को सेलिब्रेट किया. सिनेमा हाल के अंदर बाकायदा लोगों ने मिलकर गाना गाया.
मुझे रीगल के बंद होने का दुःख है, लेकिन मैं उस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता जो सिर्फ जताने के लिए बताए कि रीगल बंद हो गया.
मेरे लिए तो रीगल कब का बंद हो गया था और शायद इसीलिए मैंने उसके बारे में कुछ नहीं लिखा क्योंकि फिर मैं  अपने कस्बे के सिनेमाघर को क्या मुंह दिखाता जो अब कोल्ड स्टोरेज में तब्दील हो गया है.

नोट : लेखक पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं.  

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