मेरी आवारगी

बेटी के नाम तीसरी पाती : तुम्हारा रोना हमारी आँखों से छलकेगा

                     माँ - बेटी


बेटी के नाम तीसरी पाती

प्रिय मुनिया,

तुम्हें ये तीसरा पत्र लिखते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं तुम्हें ये पाती तब लिख रहा हूँ, जब तुम ठीक एक माह की हो गई हो। 27 जनवरी 2022 को तुमने इस खूबसूरत दुनिया में कदम रखा था, जिसे 27 फरवरी को एक माह हो गए हैं। ये एक माह तुम्हारे साथ यूँ बीता है कि जैसे हम अपने बचपन को निहार रहे हों। तुम्हारे बहाने मैं और तुम्हारी माँ अपने-अपने बचपनों में लगातार झांक रहे हैं। गोया कि तुम हमारे बचपन को फिर से देखने का कोई अतीत का द्वार हो। ये बहुत खूबसूरत अहसास है मेरी लाडो। इसे मैं शब्दों में कैसे बयान करूं।

प्रिय मुनिया, मेरी नूरे-नज़र तुम्हारी किलकारियों से अक्सर हमारे बचपन के किस्से बह निकलते हैं। कभी तुम्हारी नानी माँ तुम्हारी माँ का बचपन और उसकी अठखेलियों को अपने किस्सों से ताजा करती हैं, तो कभी तुम्हारी दादी माँ मेरे जन्म के ठीक बाद के लम्हों को साझा करती हैं। ये किस्से इसके पहले इतनी तफ़शील से हम लोगों को हमारी माँ से कभी सुनने को नहीं मिले। तुम्हारे साथ बीत रहा ये वक्त जीवन की सबसे सुखद स्मृतियाँ रहेंगी, जिन्हें मैं इन पत्रों के सहारे सहेज लेना चाहता हूँ।

प्रिय मुनिया, मेरी लख्ते-जिगर फिलवक्त ये दुनिया कोरोना महामारी से जूझती हुई यूक्रेन  और रूस के बीच चल रही जंग से तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। सम्भवतः बातचीत की पेशकश के बाद दुनिया इस त्रासदी से बच जाये। इधर हमारे देश में  विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है, तो इसी बीच तुम्हारे नामकरण का प्रस्ताव भी घर की संसद में पारित हो गया है। मैं तो यूँ भी घर वालों के बीच लाड़ के नाम रखने के लिए ज्यादा जाना जाता हूँ। इसलिये तुम्हारे नाम का चुनाव सबकी सहमति से हो गया है। तुम्हें 'यज्ञा' और 'निवेदिता' ये दो नाम मिले हैं। एक नाम तुम्हारी दुनिया में पहचान बनाएगा, तो दूसरा नाम तुम्हें परिजनों के लाड़-प्यार के बीच अपनेपन का सदैव अहसास दिलाता रहेगा।  

प्रिय मुनिया, मेरी बिटिया तुम्हारी किलकारियों के मरहम से तुम्हारी माँ के पेट में लगे चीरे के घाव अब भर गए हैं। अब एक माह बाद हम तुम्हारे जन्मोत्सव की तैयारियों में लगे हुए हैं, जो आगामी 6 मार्च 2022 को हमारे पैतृक गाँव में होना निर्धारित हुआ है। मेरी लाडो तुम पहली बार अपने गाँव जाने वाली हो, जिसकी मिट्टी मेरे लिए सुनहरी भस्म है। उसी मिट्टी का करम है कि तुम्हें गोद में लेने का सुख हम भोग रहे हैं। 

प्रिय मुनिया, मैं ये पत्र इसी अन्तिम पैराग्राफ के साथ समाप्त कर रहा हूँ, जिसे पढ़कर तुम इंसानी रिश्तों के बीच की नाजुक डोर और उनकी बुनाई को समझ सकोगी। मेरी बेटी, हम तुम्हारे साथ-साथ अपना बचपन जीना और तुम्हें हंसते-रोते देखना एक तरह से खुद को देखना है। लोग सच कहते हैं कि दुनिया में हर सन्तान के जन्म के साथ-साथ एक जोड़ा 'माँ-बाप' का भी जन्म होता है। मुझे याद आता है, जब पिता जी किशोरावस्था में मेरी किसी गलती पर डांट-फटकार लगाते हुए भावुक हो जाते, तो कहते कि 'ये तुम अभी नहीं बाप बनने के बाद समझोगे कि बच्चों की बदमाशियों में भी माँ-बाप उन्हें डांटते-डपटते या चमाट लगाने पर कितनी तकलीफ़ महसूस करते हैं।'  वाकई मैं इस दर्द को अब ठीक-ठीक समझ पा रहा हूँ। जब तुम रात में सोते हुए चौंककर जागने के बाद लगातार रोना शुरू करती हो, तो तुम्हारी आँख के कोर से आँसू छलकने के पहले तुम्हें शांत करना जैसे अपनी आत्मा को शांति पहुंचाना हो गया है। तुम्हारी माँ के लिए तुम्हारी भूख शांत करना अब उसका खुद का पेट भरना  हो गया है। मेरी जान, बस यूँ समझ लो कि तुम हमारी जिंदगी की धुरी हो और अब हमारा हंसना- रोना-गाना मायने नहीं रखता, क्योंकि ये सब तुम्हारे इर्द-गिर्द बुन गया है। अब तुम हँसोगी तो हमारे लब भी खिलखिला उठेंगे और तुम्हारा रोना हमारी आँखों से छलकेगा। शेष अगले पत्र में....।

- तुम्हारा पिता
© दीपक गौतम
-28 फरवरी 2022

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