मेरी आवारगी

लुटे हुए अरमानो की तुझे प्यास क्यों है

दिलों मे नफरत की 
हवा घुलने लगी है।
बात कैसे करूँ प्यार की 
जब हर तरफ़ ये 
आबो हवा बहने लगी है।

चुभन सी कुछ अपने आप से 
और घुटन होने लगी है।
अब जिन्दगी यों सुलझकर 
भी क्यो उलझने लगी है।
मैं कौन हूँ जो मुझे ये 
जलन होने लगी है।

एक अहसास खोया सा है 
और लुटे-लुटे ख्वाब क्यों हैं ?
आज इस सवाल के
जवाब में वो क्या कहते ?
बोले लुट चुके अरमानो 
की तुझे प्यास क्यों है ?

ख़ुद से महफूस
 रखा था ख़ुद को।
फिर इस ज़हर की 
जिन्दगी को तलाश क्यों है ?
साकी भी हम आवारा
मयकदा भी हमारा है।
अब क्या रोकेगी दुनिया 
जब साकी ही पीने
और पिलाने वाला है।

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