मेरी आवारगी

अहसास की लौ हूं तन्हा

कुछ पंक्तियां थीं जो आपसे बाटना चाहता हूँ यूं तो मैं इस समय ब्लॉग मे लिख नहीं पा रहा हूँ ।
न लिख पाने की तड़फ को शायद कोई समझ पता ....पंक्तियां मेरी तो नही है पर जिसकी भी है बेहद खूबसूरत हैं

'' यही आवाज का मौसम है न टालो मुझको
सवालों से निपटने दो सवालों मुझको
मै खरा सिक्का हूँ जब चाहे चला लो मुझको
सरे बाजार न रह-रह के उछालो मुझको
आईने आज की तहजीब के सब पत्थर है,
फिर से ढूढों मेरे माझी के हवालों मुझको
मेरा क्या मै तो अहसास की लौ हूँ तनहा
जी में जब आये जला लो की बुझा लो मुझको''

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1 Comments

बहुत अच्छी पंक्तिया है , सरे बाजार न रह-रह के उछालो मुझको.......