मेरी आवारगी

लहू निचोड़ के ख्वाबों में भर सको ..तो चलो

पंकज शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, आज तक, दिल्ली 
मुझे क्रांति का वो रास्ता भाता है जिसमें बलिदान सर्वोपरि है.....मुझे भरोसा है मेरी क्रांतिपथ पर जो चलेगा वो कभी भटकेगा नहीं...क्योंकि हमारी मंज़िल...राजनीति नहीं...बलिदान है....आइए...जिसको मेरे साथ आना है...शर्तें नीचे लिखी हैं. ये शब्द मेरे नहीं पंकज शर्मा जी के हैं जिनकी फेसबुक वाल से साभार आपको ये कविता पढ़ाने जा रहा हूँ. मेरी पसंदीदा उनकी दीवार पर से।


लहू निचोड़ के ख्वाबों में भर सको ..तो चलो
अपने सर को कलम खुद ही कर सको...तो चलो
शर्त ये है... सफ़र में .... मंज़िलें नहीं होंगी
जो बीच राह ..मेरे संग...मर सको...तो चलो
लहू निचोड़ के ख्वाबों में भर सको ..तो चलो
कोई परचम...कोई सलाम...कोई मक़बूलियत नहीं
कि मेरी जंग में...ज़िंदगी की सहूलियत ही नहीं
शहादत होगी..मगर सुर्खियों में नाम नहीं
जो खुद के होने से तुम... मुकर सको....तो चलो
लहू निचोड़ के ख्वाबों में भर सको ..तो चलो
कफन मिलेगा या बेलिबास होगे तुम रुखसत
तुम्हारे वास्ते किसी तारीख को न मिलेगी फुरसत
जो है मंज़ूर मेरी शर्त ...तो...बस चले आओ
चटकती आग में जो खुद को धर सको...तो चलो

लहू निचोड़ के ख्वाबों में भर सको ..तो चलो

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