मेरी आवारगी

क्रांति सिर्फ भ्रांति है

पंकज शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, आज तक दिल्ली


तुम्हारी तनी मुट्ठियां
तनती हुई गले की नसें
पलकों से टपकता लहू
धौंकनी की तरह धड़कता दिल
फड़फड़ाते होंठ..पिसते हुए दांत
आंखों में दहकते अंगारे
आसमान को भेदते हुए नारे
सब बेकार हैं...
क्योंकि मैं जान चुका हूं
क्रांति सिर्फ भ्रांति है
कुछ लोगों के लिए 
एक रास्ता
सत्ता तक का
कवि हृदंय -पंकज शर्मा जी 
की फेसबुक वाल से साभार

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