मेरी आवारगी

रावण रथी, विरथ रघुवीरा।

Ashutosh_Rana

 

रावण रथी, विरथ रघुवीरा।

रथी को पलटने पर "थिर" होता है। अर्थात रूका हुआ, स्थिर। रथ गतिमान होता है किंतु रथी स्थिर होता है।रथ भाग रहा होता है किंतु रथी अपनी जगह पर रुका हुआ होता है । रथी होना साधन को महत्वपूर्ण बनाता है इसमें साधक की गति,दिशा व दशा "साधन" पर निर्भर रहती है ।
विरथि अर्थात जो रुका हुआ ना हो, विरथि होना "साधना" के महत्व को इंगित करता है ।
यानि जो साधक - "साधन से नियंत्रित हो" वह रावण होता है, और जो साधक अपनी "साधना से साधन को नियंत्रित करता है" वह राम होता है ।
"साधन" का आश्रय साधक की गति को कुगति में बदल देता है व "साधना" के प्रति पूर्ण आस्था साधक की प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल में बदल देती हैं ।
"साधन सम्पन्न" होने की चाह रावण का मार्ग है, तो "साधना सम्पन्न" होना राम की दिशा।
संसार को जीतने उसे नियंत्रित करने की चाह "रावण" की चाह है, तो स्वयं को जीतने, नियंत्रित करने की इच्छा रामेच्छा है ।
रावण शासन में विश्वास करते थे तो श्रीराम अनुशासन के पक्षधर थे ।
रावण "त्रिलोक विजेता" हो लंकाधिपती कहलाए तो श्रीराम "त्रिताप हंता" हो कालाधिपती हो गए। प्रिय मित्रो आप "साधन" नहीं "साधना" के मार्ग पर बढ़ें , आप "साधनों" की नहीं "साधना" की शक्ति से विजय प्राप्त करें। रावण यानि जिसे क्रंदन में आनंद मिलता है और राम यानि जिन्हें वंदन प्रीतिकर होता है । विजयदशमी साधना की साधन पर विजय का पर्व है। आप क्रंदन से वंदन की ओर बढ़ें, आपका जीवन क्रंदनीय नहीं वन्दनीय हो•• मंगलकामनाएँ ~ आशुतोष राना 

साभार :  मशहूर फिल्म  कलाकार आशुतोष राना की फेसबुक वॉल से।

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