मेरी आवारगी

मुर्दों ने छुड़ायी नौकरी, छुटकी ने करायी चाकरी

 राजीव मित्तल
Rajeev Mittal·Sunday, February 13, 2011
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मित्तल जी का संस्मरण
31 दिसम्बर। आधी रात कब की बीत चुकी थी। नोएडा से वैशाली की तरफ जाते हुए गाजीपुर कब्रिस्तान के सामने स्कूटर रोक दिया। कुछ सोचता रहा..फिर यहां-वहां आंखें घुमायीं ..भूले-भटके कोई रूह दिख जाए।  ठंड से कंपकंपी बढ़ने लगी तो भन्ना कर मुंह से निकला..हे  नामाकूलो..... सुन रहे हो ना.......मेरा अमर उजाला से पीछा छुड़ाओ.. तभी श्वान झुंड आ धमका और हल्ले बाजी शुरू कर दी।  .... स्कूटर स्टार्ट कर चल दिया। और लीजिये......बीस दिन बाद  बेरोजगार था।
घर वालों को पता चला तो दो-चार बार हाय हू की.....यह पहली बेरोजगारी लम्बी खिंची..... इस बार पहले से नौकरी का कोई इंतजाम नहीं था....इसलिये....
अमर उजाला  के नोएडा दफ्तर में पौषी पूर्णिमा यानि 19 जनवरी को कहा गया, या तो मेरठ जाओ या इस्तीफा दो।  जो आसान लगा वही किया।  अगले ही दिन से माघ लग गया।
पूरे माघ अंगुलियां भी नहीं चटकायीं.....फाल्गुन शुरू होते ही फाई-फाई यानि zee चैनल में संजय पुगलिया को फोन किया.....बंदे ने मिलने को बोला...मिला...भले से बात की....कहा,  ठीक है तीन दिन  बाद एक और मीटिंग रख लेते हैं।  तीन दिन बाद वो चैनल ही छोड़ गए, उनकी जगह तिड़िकझाइम टाइप राकेश खर मिले.... साथ में गदबदे जिस्म वाली एचआर भी मौजूद ...  दोनों ने एकसाथ ठेका लगाया--आपको बुलेटिन निकालना आता है....अपने बोल फूटे...टीवीआई में 350 निकाल चुका हूं और सहारा चैनल से मैं खुद निकल निकल।  गदबदी और खर  कूके.......हमारा बुलेटिन कैसा लगता है......दो कौड़ी का ( सोच मन में रहा था.....निकल गया कमबख्त मुंह से)।  अब सिर्फ जीभ काटना बचा था.......सो काट भी ली...
चैत्र में  एक मित्र का फोन आया कि  रेरेसस  से मिल लो करनाल जा कर।  एक सुबह टीवीआई के साथी अगस्त अरुणाचल के साथ तमिलनाडु से आयातित उसकी ओरिजिनल बुलेट  पर करनाल जा कर भास्कर के कारकून जगदीश शर्मा भी मुलाकात कर ली।  कुछ किया-विया नहीं उन्होंने, क्योंकि एक रात पहले उनकी जनानी आवाज सुन फोन पर ही हंसी छूट गयी थी।
वैशाख में रिश्ते वाले भाई ने  सुषमा स्वराज के पति से मिलने को बोला ......बिल्कुल ही चिरकुटहा निकला. .उसको लगा दो-चार हज़ार का आदमी है.....
ज्येष्ठ में पता चला कि एक भवन निर्माता आलोक मेहता की अगुआई में साप्ताहिकी निकाल रहा है । गगमम टाइप मेहता से समय लेकर मिला।  सज्जन पुरुष---सज्जनता से पेश आए...कुछ पुराने गीत गाये गये।  गाते गाते बायोडाटा पकड़ाया....हेंहेंहें-हींहींहीं के बीच विदा हो लिया........
वैशाख-ज्येष्ठ में  भारतीय मीडिया श्लाका पुरुष रूपी ताऊ जी रमेश चंद्रा से मिला और लखनऊ से निकल रहे टटपूंजिया जनसत्ता अखबार के लिये  सिफारिश करने को कहा।  उनसे लिखाया सिफारिशी पत्र एक सरकारी बंगले में विराजमान नेता कम मालिक अखिलेश दास को थमाने पहुंच गया.....जिसे एक चाकर ने पकड़ा।  फिर लखनऊ चला गया कि वहीं मंदिर में दास जी के साक्षात दर्शन कर लिये जाएं.....जो नहीं हो पाये।
ज्येष्ठ में कम्पटीशन मास्टर टाइप पत्रिका के सम्पादक पद के लिये साक्षात्कार हुआ।  मालिक रूपी प्रधानसम्पादक ने चाल और हाल जानकर पूछा-आपके कितनी सन्तान हैं?....दो...... उनके नाम? चुन्नू-मुन्नूु।  ठीक है हमारी ये (उन्हें अनुराग से देखते हुए) आपको जल्द ही बता देंगी।
........वहां से उतर नीचे बाइक पर बैठे मुन्नू को दोसा खिलाया........
ज्येष्ठ में ही zee चैनल के गोयल जी का फोन नम्बर हासिल कर टटोला, तो बुला लिया गया।  उनके कैबिन में वही एचआर मौजूद....गदबदे बदन वाली.....गालों में गड्ढे डाल मुस्कुरा रही।  वो खुद भी नहीं जानते थे कि क्या बात करें (बताया जाता है कि धान से भूसी निकालने का काम करने के दौरान उन्हें चैनल थमा दिया गया)। आखिरकार मैं ही टर्राया कि मैं क्यों आया हूं।  गोयल जी टुनटुनाए.....बाद में बताएंगे।
तथाकथित सबसे तेज चैनल आजतक में ट्राई इसलिये नहीं किया कि दो साल पहले धधनीनी टाइप क़मर वहीद नक़वी ने अपने तईं इंटरव्यू तक तो पहुंचा दिया लेकिन जब अंदर घुसे तो उदय शंकर की भेड़िया कर मुस्कान ने अपने तोते उड़ा दिये। पिछले चैनल में एक साथ रहते किसी मामले में उस बाहुबली को इन कमजोर हाथों बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी।  मन ही मन वहां नामौजूद  धधनीनी को जी भर कर कोसा।  नौकरी तो तेल लेने जा ही चुकी थी।
बचा ndtv चैनल,  तो वहां का किस्सा यह कि वो शुरू हुआ ही   था...टीवीआई में रहते ही आवेदन दिया...हरकारे के हाथों एक दिन बुलवा लिया गया।  इंटरव्यू लेने वाले सज्जन खांटी चोंचों टाइप थे..जनाब  को पहली आपत्ति यह थी कि मैंने आवेदन में काऊ को गऊ क्यों लिखा....दूसरी कि मैं उन्हें.... नुक्ता चीं ए गम-ए-दिल.....एंग्लो सेक्सन में क्यों नहीं सुना रहा हूं।  खैर...............................
बेली रोड वाले आंखन देखी वाली के सरकारी बंगले में इसलिये नहीं घुसा क्योंकि देवी तारामती ने चार हजार, तो पतिदेव सुरसिंगार ने चालीस रुपये का चूना पिछली बार लगा दिया था।
रुमाल से धोती भये 24 चैनल में अजित अंजुम को पुराने  दिनों की याद दिलाने बाकायदा उनके घर में घुस गया, भाई ने बीबी के हाथ की सैंवई खिला कर टरका दिया।
अब हम आषाढ़ में आ जाएं।  यही सबसे महत्वपूर्ण है...एक रात छोटा बेटा गेट खोल कर अंदर आया और बाहर से ही आवाज दी..पापा जल्दी आओ..बल्ब की रोशनी में देखा..थोड़ा तिरछे खड़े हो बड़ी अदा से गर्दन घुमा कर घूरा जा रहा है।  इसका क्या करें पापा.....कुछ जवाब देते नहीं बना।  अब तक नातेदारी में पल रहे श्वानों को तो पुचकार लिया करता था, लेकिन घर में घुस आयी इस नन्हीं जान का क्या किया जाये। दमे की वजह से डॉक्टरों की तरफ से सख्त पाबंदी थी।  अंदर से लाकर उसे रोटी डाल दी..खा भी ली...फिर वो हम बाप-बेटे की असमंजता से बोर होकर गेट के बीच के सींखचों से सड़क पर निकल ली।
अगली रात को फिर प्रकट भयी।  बेकरार हो उस सड़कछाप को नाक-भों सिकोड़ते हुए गोद में उठा लिया, तो मुंह चाटते हुए कुनमुमायी--मेरे साथ खेलोगे तो बोलो....वरना मैं चली।
बेटे ने असल बात बतायी कि पिछली रात किसी के दरवाजे बाहर फेंकी गयी थी। किसी खड्ड में उसकी कूं-कां सुन उधर से निकल रहे बेटे का ध्यान गया... उठा लाया। बित्ते भर की काया। सफेद काया पर कत्थई चकत्ते।  कत्थई माथे पर सफेद टीका।  भेड़िये की सी आंखों के बावजूद मोहिनी सूरत। उठा कर ऊपर टेरेस पर ले गया।  नाम रखा छुटकी। 
उसके अवतरण से बेरोजगारी का भारीपन थोड़ा कम हो गया। आसमान गहरा नीला और  रातें कम स्याह लगने लगीं।  सारा घर उसके पीछे पागल।  हम चार जनों की बच्ची।  घर से बाहर जाओ तो छुटकी, बाहर से आओ तो छुटकी।
इधर, कई पंडितों और ज्योतिषियों के यहां चक्कर काटने के बाद श्रावण में श्रीमती जी ने बेरोजगारी दूर भगाने के उपाय करने को स्यापा मचाना शुरू किया। उनमें हर बृहस्पतिवार को हाथी और मगरमच्छ में चली हाथापाई की ठांव-ठांव, किसी और वार को एक राजा की दो रानियों सुमति और कुमति की चांव-चांव।  ज्योतिषि के उपाय तांबा...कोयला बहते पानी में बहाना और सरसों तेल की शीशी नाले में गाढ़ना...ये सारे अद्भुत उपाय अद्भुत अंदाज़ में कर भी डाले....उससे भी अद्भुत कि नौकरी मिल गयी।       
एक रात किसी चैनल की स्क्रौलिंग पर देखा कि नवीन जोशी हिन्दुस्तान पटना के सम्पादक हो गये हैं।  तुरंत उन्हें फोन लगाया कि इस नाचीज को बारोजगार कर दे भाई......अबे नालायक....तुम कब सुधरोगे की अजान के साथ उन्होंने तुरंत जीवनवृत्त भेजने को कहा....भाद्रपद शुरू होने के कुछ ही दिन बाद फोन आया दिल्ली  में हूं फौरन कस्तूरबा गांधी मार्ग पहुंचो।  उन्होंने मृणाल जी से मिलवाया।  सो, मुजफ्फरपुर जाने का आॅर्डर हुआ......(लिच्छवि गणतंत्र का यह नगर जैसे बरसों से इसी अनहोनी का इन्तजार कर रहा था)........
नियुक्तिपत्र मिलने पर छुटकी की पो-बारह।  अगले तीन दिन उसके पांव जमीन पर नहीं रखने दिये गये।
जब तक सबको लखनऊ शिफ्ट नहीं किया,  वैशाली आना-जाना लगा रहा।  घरआते ही सबके पास किस्से छुटकी के ही होते।  सिर के पास आसन-पाटी लगा कर सुनती अपनी कारस्तानियां।  जैसे ही आॅटो रुकता, बाहर ही इंतजार करती मिलती और बाहर ही सारा प्यार लुटा देती।  जाने के दिन सामान बंधता देख चुप लगा कर किसी कोने में दुबक जाती।  आॅटो आता तो पता नहीं किस खोह से निकल कर सामान के साथ खुद भी सवार। कई सारे करार करने पड़ते, तब आॅटो हिल पाता.....आशीर्वाद कॉलोनी वालों को  ऐसे दृष्य  कई बार देखने को मिले...... लेकिन हम मजाक का पात्र नहीं बने....वे भी समझ गये थे... पगलैटों का परिवार है।
लखनऊ में छुटकी का साथ ग्यारह साल रहा..।।
साभार : राजीव मित्तल जी की फेसबुक वॉल से।
नोट : ये लेखक के अपने विचार हैं। इसमें कोई संपादन नहीं किया गया है, किसी तरह की आपत्ति के लिए मेरीआवारगी ब्लॉग जिम्मेदार नहीं होगा

Post a Comment

0 Comments