मेरी आवारगी

समस्या से समाधान की ओर एक कदम




मेरे ही जूतों पर काम चल रिया है। बखिया दुरुस्त की है इन्होंने। दोस्ती वाले खाते के कैशबैक से इन्होंने पॉलिस फ्री में करने का ऑफर भी दिया लेकिन मैंने स्वीकारा नहीं 


 ये संजय सोनवणे हैं। पेशे से मोची हैं। मेहनत की खाते और कमाते हैं। बैंक ऑफ़ बड़ौदा में इनका खाता है, लेकिन आज तक एटीएम नहीं लिया है। क्योंकि इसकी उन्हें जरूरत नहीं पड़ी। अब जब नोट बंदी हुई है तो एटीएम के लिए जल्द अप्लाई कर रहे हैं। मुद्दे की बात ये है कि मेरे दो जोड़ा जूतों की उधड़ चुकी बखिया (सिलाई)  दुरुस्त कराने के लिए सुबह मैं इनके पास गया था। पेमेंट करते समय इनकी शर्ट के ऊपरी खीसे में पड़े स्मार्ट फोन को देखकर पूछा कि पेटीएम लेंगे क्या। तो इनका जवाब था साहब माझा कड़े फोन अणि जियो चा चांगळा नेट आहे पण अता पर्यंत मी पेटीएम यूज किलेला नाहीँ तर तुम्हीं सांग नन्तर मी यूज करतो। इनकी हामी मिलने के बाद मैंने पेटीएम पर इनका खाता बनाया उपयोग बताया और 150 रुपये ट्रांसफर करके घर चला आया। लगभग आधे घण्टे खर्च हुए, मगर सुकून है एक मेहनतकस इंसान तकनीक का उपयोग करना तो सीख पायेगा। समस्या तो हर जगह है समाधान की ओर बढ़िये। इनसे नम्बर का आदान-प्रदान करके आगे भी मदद करने का भरोसा देकर मैं निकल आया हूँ। सोनवणे औरंगाबाद के एमजीएम कैंपस स्थित जेएनईसी कॉलेज के मेन गेट पर अपनी दुकान सजाते हैं। जरा सा वक्त लगेगा  लेकिन करके देखिये अच्छा लगता है.

भेजे गए पैसे इनके पेटीएम वॉलेट में जमा हुए

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