भले इस दुनिया में हर सेकंड चार बच्चों का जन्म होता है। मगर हर जन्म अपने आप में अलौकिक होता है। हर बार एक बच्चे को जन्म देते वक़्त स्त्री मौत की दहलीज छू कर लौटती है। इसके बावजूद स्त्रियां आज भी बच्चों को जन्म देने का रिस्क बार-बार उठाती हैं।
कल लेबर रूम के बाहर बैठा मैं जब अंदर से आ रही उपमा की चीखों और दहाड़ों को सुन रहा था तब मन में यही ख्याल आ रहा था। वैसे तो उचित था कि उस वक़्त मैं भी लेबर रूम के अंदर होता। उसके हाथ पकड़कर उसे इस दुःख को सहने का हौसला देता। मगर लेबर रूम के बाहर साफ-साफ लिख दिया गया था कि मरीज के परिजनों का अंदर आना मना है।
पिछले नौ महीने में कई बार ऐसा हुआ जब मुझे अंदर जाने से रोक दिया गया। मेडिकल चेकअप के दौरान भी पुरुषों का अंदर जाना वर्जित कर दिया जाता रहा है। igims हॉस्पिटल में भी और कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में भी। उपमा को दोनों जगह दिखाया जा रहा था। दोनों जगह गायनी डिपार्टमेंट में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। अगर आप बहुत स्पेसिफिक किस्म का कोई सवाल करना चाहते हैं तो अलग से इजाजत लेकर डॉक्टर से मिल सकते हैं। मुझे कभी समझ में नहीं आया कि इसकी वजह क्या है। बताया गया कि पुरुषों की मौजूदगी से दूसरी महिलाएं असहज हो जाती हैं।
खैर यह एक अलग प्रसंग है। मगर मैं दिल से वहां होना चाहता था, लेबर रूम में। भले कोई मदद नहीं कर पाता। मगर यह तो समझ पाता कि क्या हो रहा है। उपमा को यह तो नहीं लगता कि मौत से जूझते हुए वह अकेली नहीं है। दुनिया के कुछ मुल्कों में शायद अब पुरुषों को लेबर रूम में रहने की इजाज़त मिल गयी है। काश यहां भी यह सब चलन शुरू हो।
कल का मेरा अनुभव यही है कि हर पुरुष को बच्चे को जन्म दे रही अपनी पत्नी की इन चीखों को सुनना चाहिये। हर पुरुष को गर्भावस्था के दौरान हर मेडिकल चेकअप में पत्नी के साथ होना चाहिये और बच्चे का जन्म के बाद उसके लालन पालन से जुड़े कार्यों में हाथ बंटाना चाहिये। वर्तमान मेडिकल सिस्टम को भी सोचना चाहिये कि वह इस प्रक्रिया में पतियों की भागीदारी कैसे सुनिश्चित करे? मेडिकल चेकअप में पति-पत्नी डॉक्टर के सामने साथ-साथ बैठ सकें। लेबर रूम में पति को रहने दिया जाये। जन्म देना स्त्री की अकेली जिम्मेवारी नहीं, यह साझा दायित्व है। कष्ट तो पुरुष बाँट नहीं सकता मगर साथ खड़े होने का उसका हक और दायित्व बरकरार रहना चाहिये।
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एक और बात। कल मेरे बच्चे का जन्म बहुत सहज तरीके से हुआ। हम सभी घबराये हुए थे। IGIMS के बारे में बताया गया कि यहां सिजेरियन की सुविधा बहुत अच्छी नहीं है। हमने तय किया हुआ था कि सिजेरियन की नौबत आयी तो किसी और डॉक्टर के पास जायेंगे। मगर इसकी बिलकुल नौबत नहीं आयी। दो घंटे के लेबर पेन में बच्चे का सहज तरीके से जन्म हो गया।
अब जब इसकी वजह तलाशता हूँ तो समझ आता है कि गर्भावस्था के दौरान उपमा का लगातार सक्रिय होना बड़ी वजह रही होगी। उसने पूरे नौ महीने में कभी आराम नहीं किया। हम लोगों की तमाम कोशिशों के बावजूद न किचेन जाना छोड़ा, न दूसरे घरेलू काम। इस बीच मैंने कई दफा किचेन में घुसपैठ करने की कोशिश की कि कुछ जिम्मेदारी उठा लूँ। मगर इसमें बहुत आंशिक सफलता ही मिली। अब शायद कुछ दिनों यह मौका मिले। उपमा कल सुबह का खाना खुद बनाकर और घर के सारे काम निबटा कर अस्पताल आयी थी।
यही वजह होगी कि आज के जमाने में बच्चों का जन्म होना एक पूरा का पूरा प्रोजेक्ट बन गया है। हमने इस बच्चे को बिना किसी फ़िक्र के धरती पर आते देखा। दिलचस्प है कि अब तक मेरे सिर्फ 6-7 हजार रुपये ही खर्च हुए हैं। और ये भी कई तरीके से वापस मिलने वाले हैं। यह अनुभव भी कुछ सिखाता है। क्या यह आप समझ सकते हैं।
चलिये, फ़िलहाल हम इस नए मेहमान के शुरुआती इशारों को देख देख कर खुश हो रहे हैं। वह बार-बार आँखे खोल कर बाहर की दुनिया को देख रहा है। आप सबों की शुभकामनाओं से अभिभूत हूँ। उम्मीद है कि मेरा यह लिखा आपके किसी काम आयेगा।
नोटः यह चिट्ठा वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र जी की फेसबुक वॉल से साभार बिना सम्पादन के यहाँ चस्पा किया गया है। इससे जुड़े किसी भी तरह के सवाल-जवाब के लिए उनसे फेसबुक पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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