चार माह पूर्व एक घनघोर कामरेड देवास में थे, हम लोग बैठकर बियर पी रहे थे। साथ में घोर वामपंथी लेखक, कवि और कुछ समाजसेवी थे। उस साथी ने कहा था कि उप्र में 50 लोग वामपंथ की तरफ से खड़े होने को नही मिल रहे। पिछले दिनों में ये वामी खत्म हो गए है और अब वे सिर्फ भक्तों की गालियों, उवाच और कुछ कबूतरों की बीट के बीच सड़ गल रही किताबों में ही मिलते है। पंजाब जैसे राज्य में जहां बड़े बड़े कामरेड जैसे सुरजीत, पाश, लाल से लेकर शिव बटालवी तक हुए- में सुपड़ा साफ़ हो गया तो मणिपुर में क्या खाकर आते ? वामपंथ तरक्की पसंद लोगों के लिए सौंफ और पान बहार मसाला है जो गरिष्ठ भोजन के बाद तले गले ज्यादा खा लिए भोजन को पकाने का साधन है जिसे अपच से बचने के लिए चलते फिरते खाया जाता है। और बाकी तो सरकारी नौकरी करके लच्छेदार भाषा में कहानी उपन्यास लिखकर थोथी वाहवाही लूटने और पुरस्कार बटोरने से लेकर हवाई यात्राओं से दीन दुनिया से संबंध बनाने का एकमात्र रास्ता रह गया है। बाकी तो वामपंथियों से बड़ा शातिर, अवसरवादी और घमंडी कोई है नहीं। जो कामरेड्स महंगे गजेट्स लेकर गरीबी का रोना रोते है, कार के नीचे पाँव नहीं रखते और नौकरी के बदले हरामखोरी कर छल्ले उड़ाते रहते हैं और ज्ञान की ब धि या बाँटते रहते है उन मूर्ख और घोर अवसरवादियों को क्या इज्जत देना और मार्क्स का वंशज समझना, इनकी असली औकात तब पता चलती है जब मुफ्त की बियर के दो घूँट गले से उतारते हैं।
#उप्रचुनावपरिणाम
नोटः यह हमारे आत्मीय संदीप नाईक भैया की हालिया चुनावों पर वामपंथ को लेकर एक त्वरित फेसबुकिया टिप्पणी है। वामपंथ पर उनसे विमर्श उनकी फेसबुक वॉल पर जाकर कर सकते हैं। यकीन मानिए आपको काफी कुछ नया मिलेगा। जीवन के लगभग 2 दशक से ज्यादा एनजीओ को दे चुके दादा बेहद घुमंतू और पढ़ाकू हैं। उनसे आपको हर विषय पर सीखने को मिलेगा। निराला जीवन जीते हैं। और प्रेम करने लायक प्राणी हैं।
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