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प्रश्न : हे संजय, अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर मुझे कोरोना काल के आरंभ के विषय में बताओ।
उत्तर : राजन, इस विनाश का आरंभ जहां से हुआ है, उन्हें भी संपूर्ण रूप से यह ज्ञात नहीं कि इसकी उत्तपत्ति कैसे हुई। हां, यह अवश्य है कि भूलवश ही सही लेकिन चीन ने स्वयं ही अपनी लंका में आग लगाई है। जब इस महामारी की आग से पूरा विश्व झुलसने लगा, तो उन्होंने आग फैलने और उसे बुझाने के उपायों की सटीक सूचना संसार से छिपाई है भगवन।
प्रश्न : तुम्हारे कहने का क्या आशय है संजय ? मुझे इस सम्बंध में तनिक और विस्तार से बताओ ?
उत्तर : महाराज, आपका तो चीन के राजन से स्वयं ही साक्षात्कार हुआ है। आपके गुप्तचरों की भी लंबी सेना है। इसके पश्चात भी आप भोले बन रहे हैं, तो सुनिये। मैं देख रहा हूँ कि कोविड-19 के सम्बंध में इस संसार में जो तरह-तरह के भ्रम फैले हैं, उनमें से एक यह भी है कि लॉकडाउन ही इससे बचने का उपाय है। आपने भी तो 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर विश्वभर में कीर्ति पाई है। आप स्वयं इसके साक्षी हैं कि आधी से अधिक दुनिया पिछले 4 माह से लॉकडाउन में ठप पड़ी थी, लोग अपने घरों में बंद थे। इसके उपरांत भी संक्रमण की गति कम नहीं हुई। संक्रमित रोगियों के आंकड़े लगातार वृद्धि से देखते-देखते लाखों में पहुंच गए। आज तो पूरे संसार में त्राहि-त्राहि है। यदि लॉकडाउन इसका कारगर उपाय होता, तो तस्वीर बदली हुई होती राजन।
प्रश्न: तुम कहीं ये तो नहीं कहना चाह रहे हो संजय कि चीन ने संपूर्ण संसार को मूर्ख बनाया है ?
उत्तर : राजन, आपके कम कहे में जब आपकी प्रजा इतना अधिक समझती है कि आपने केवल आत्मनिर्भर कहा उन्होंने संपूर्ण आत्मनिर्भरता को आत्मसात किया। फिर आप क्यों नहीं समझ रहे हैं। प्रभु मैं दिव्य दृष्टि से देख रहा हूँ कि चीनी राजा ने पूरी दुनिया में लॉकडाउन का मायाजाल फैलाकर भ्रम और भय का साम्राज्य खड़ा किया, उसके इस कदम ने समस्त संसार की आर्थिक गति को विराम दिया। लेकिन चीन ने तीव्र गति से व्यापार किया और शेष संसार की तुलना में स्वयं कोरोना से कम ही प्रभावित हुआ। आज चीन अपने सुधारों पर गर्व कर रहा है, लेकिन कारगर उपाय किसी से साझा नहीं कर रहा है। आज 4 माह बाद की बदली हुई तस्वीर यह है राजन कि धीरे-धीरे समस्त राष्ट्र लॉकडाउन से मुक्त हो रहे हैं। संक्रमण पहले जैसा ही लगातार बढ़ रहा है, लेकिन चार माह से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को बढ़ने में लम्बा समय लगेगा। हम आर्थिक रूप से वर्षों पीछे चले गए हैं, लेकिन चीनी मस्त हैं। यहाँ हम और आप काली चाय में और अधिक कालीमिर्च एवं चीनी डालकर इसका सेवन करने को विवश हैं।
प्रश्न : तो क्या तुम्हारे कहने का तात्पर्य है कि ड्रैगन ने संसार से छल किया है संजय ?
उत्तर : महाराज, आप इतने भी नादान न बनिए। अभी भी आपको मेरे कहे पर संदेह है, तो आप भारतवर्ष की स्थिति और संसार के दूसरे राष्ट्रों की परिस्तिथियों का स्वयं आंकलन कीजिये। कोरोना के विषाणु को लेकर जितनी शोध आ रही हैं। सब में अलग-अलग तरह के दावे हैं, क्योंकि वास्तव में चीन ने जितना बताया है विश्व उतना ही जान पाया है। इसी मायाजाल के चलते सम्भवतः अब तक हल नहीं मिल पाया है। मैं क्षमा चाहता हूं कि मुझे यह कहना पड़ रहा है राजन, लेकिन आपके पास गुप्तचरों का लम्बा विभाग है, उन्हें भी कुछ आदेश करिये या आप सारी सूचनाओं के लिये केवल दिव्य दृष्टि पर ही निर्भर हैं।
प्रश्न : संजय, तुम चीन को छोड़ो उससे तो इस कोरोना काल के बाद निपट लेंगे। किंतु तुम ये जो अपने राजा पर लांछन लगाते हो कि हमने इस संकट से उबरने के कारगर उपाय नहीं किए उसका क्या ?
उत्तर : राजन, मैं तो दिव्य दृष्टि से देखकर यही कह सकता हूँ कि स्वयं की बुद्धि पर भरोसा करते हुए ऐसे विकट समय में केवल विषय-विशेषज्ञों के परामर्श पर ही कार्य करना चाहिए था। लॉकडाउन के पश्चात उत्त्पन्न होने सम्याओं पर भी गहराई से चिंतन होना था। पूर्व में भी आपने एक तरह की बंदी की थी, उसी से कुछ सबक लिए जा सकते थे। केवल अपने विश्वसनीय मंत्रियों, सलाहकारों या मित्रों के कहने पर ही चलना उचित नहीं है। परन्तु इसमें आपका कोई दोष नहीं है, ये सब समय का फेर है। होनी बहुत बलवान होती है राजन। आज क्या होना चाहिए था या कैसा हुआ, क्यों हुआ। इसका उत्तर तो आपके आलोचकों को भी नहीं सूझ रहा है।
प्रश्न : संजय, क्या तुम देख नहीं रहे अनलॉक-1 के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार होगा ?
उत्तर : राजन, इस महामारी में निहित विनाश और सुधार की प्रक्रिया से तो पूरा संसार गुजर रहा है। आपका शेयर बाजार गति पकड़ रहा है, आदमी भी घर से निकलकर दौड़ने का प्रयत्न कर रहा है। कल-कारखाने खुल गए हैं, लेकिन मजदूर नहीं हैं। वे रोते-बिलखते अपने गृह राज्य पहुंचे हैं, उनके पास काम कम है। कौशल रखने वाले नागरिकों के कार्य भी छिन गए हैं। विभिन्न कार्य क्षेत्रों में वेतनमान काट दिया गया है। कोरोना के इस विषाणु ने व्यापार से लेकर बाजार तक आचार-विचार से लेकर व्यवहार तक सब में कटौती कर दी है राजन। मैं देख रहा हूँ बड़ी कठिन डगर है पनघट की। अब इस काल में निकट भविष्य की दारुण कहानियां मुझसे मत पूछिए महाराज। मैं इससे अधिक नहीं देख पा रहा हूँ। अभी के लिए मुझे क्षमा करिये।
© दीपक गौतम
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नोट : #संजयउवाच महाभारत के दो प्रमुख पात्रों के सहारे विभिन्न विषयों पर व्यंग्य लिखने की एक कोशिश है। इसका महाभारत से कोई संबंध नहीं है।
यह ब्लॉग मध्यमत और डेमोक्रेटिक नेशन टीवी की वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है।
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