मेरी आवारगी

तरुण भाई ने आत्महत्या नहीं की, उनका कत्ल हुआ है


तरुण अपनी पत्नी के साथ


विभोर शर्मा की फेसबुक वॉल की कतरन



तरुण भाई आपने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि आपका कत्ल कर दिया गया है। जो आपको करीब से जानते हैं शायद उनमें से कुछ लोग अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और ऐसी  परिस्थितियों के पैदा होने का कारण सबके सामने रखेंगे। बावजूद इसके तरुण सिसोदिया की आत्महत्या खबर नहीं बनेगी। किसी ढंग के मीडिया संस्थान में तरुण भाई की आत्महत्या को 360 डिग्री के एंगल से नहीं दिखाया जाएगा। साधारण खबर भी चलने की उम्मीद कम है।

कोई और संस्थान तो छोड़िए खुद उनका संस्थान दैनिक भास्कर भी शायद एक कॉलम की खबर छापना भी मुनासिब न समझे। क्योंकि ये तो संस्थान का एक रिपोर्टर मात्र है। कालांतर में इसी अखबार के समूह सम्पादक कल्पेश जी की दुःखद मृत्यु पर जिस तरह की लीपापोती कर भ्रामक समाचार छापे गए थे। वो एक तरह से ऐसी परिस्थिति में पूरी मीडिया के चाल-चरित्र को परिभाषित करने के लिए काफी हैं। रोजी-रोटी के संकट के बीच गिने-चुने पत्रकार साथी ही ऐसे विषयों पर लिख-बोल पाते हैं, लेकिन सच यही है कि अगर अब नहीं बोलेंगे तो आखिर कब वो दिन आएगा? आखिर कब पत्रकार अपनी आपबीती कहने में हिचक और शर्म महसूस करना बंद करेंगे? ये सब अनुत्तरित प्रश्न हैं।

हिंदी पट्टी के साधारण पत्रकार की आत्महत्या कभी खबर नहीं बनती है। क्योंकि वो खबर का विषय ही नहीं है, फिर उसकी मौत स्टारडम के करीब भी तो नहीं है। उसके मरने में कोई सनसनी भी तो नहीं है, उसके जाने के बाद कुछ सच बाहर आने लगेगा उसे भी तो दबाना है।  असल में हिंदी पट्टी के एक अदने पत्रकार के मर जाने की खबर में कोई सनसनी नहीं, उसकी मौत स्टारडम के करीब नहीं, उसकी मौत में कोई मसाला नहीं और वो खबर का विषय भी नहीं है। क्योंकि उसकी आत्महत्या की खबर मीडिया संस्थानों के अंदर की गंदगी को बाहर ले आएगी। सच भले ही कई पर्तों में दबा हो आखिरकार बाहर तो आ ही जाता है। बस उसी सच से ये सारे संस्थान घबराते हैं।

 खासतौर पर हिंदी पट्टी के पत्रकार कितने अमानवीय और दबाव भरे वातावरण में काम करते हैं। इसका अंदाजा भी आप नहीं लगा सकते हैं। खबर ब्रेक करने की होड़, टीआरपी की होड़, सबसे पहले, सबसे बेहतर और सबसे अलग एंगल परोसने के चक्कर में एक पत्रकार कब और कैसे खुद से ही अलग हो जाता है, इसका पता भी नहीं चलता है। कब और कैसे मानसिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि मुफ्त में इस पेशे की देन हाई/लो बीपी, गैस, शुगर और हाइपर टेंशन आदि का शिकार हो जाता है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दुनियाभर के दर्द, तकलीफ और समस्याओं पर बड़ी-बड़ी रपट लिखने वाली पूरी मीडिया बिरादरी अपने पत्रकार साथी की आत्महत्या पर चुप रह जाती है। वो अपने साथियों के लिए कब खड़ी होगी ? कब मीडिया संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करेगी ? इनके जवाब हमें तलाशने होंगे। क्योंकि इसी का फायदा उठाकर मीडिया संस्थान लगातार पत्रकारों की असामान्य मौत को लेकर लीपापोती करते रहते हैं। ये भी खूब है कि पत्रकार भले ही अपने मुद्दों पर एक न हों, लेकिन मीडिया संस्थान ऐसे मामलों में पूरे एकमत से एक-दूसरे के खिलाफत वाली खबरें पचा ले जाते हैं। ये सालों से चला आ रहा है कि पत्रकारों की हत्या हो या आत्महत्या आवाजें दब जाती हैं या दबा दी जाती हैं।

अभी हाल ही में भोपाल से छोटे भाई जैसे एक होनहार पत्रकार के डिप्रेसन में आने की खबर आई। मन बड़ा व्यथित हुआ। उसे महीनों से नींद नहीं आ रही थी। मीडिया की व्यवस्था ने उसे ऐसा चपेट में लिया है कि एक गम्भीर बीमारी का शिकार हो गया है। मैं उसका नाम नहीं लूंगा। यहां तरह-तरह के तनावों के बीच काम करते हुए खुद को मानसिक रूप से कमजोर होने से बचाए रखना भी एक कला है। अन्यथा कब ये व्यवस्था देखते-देखते अनचाहे रोगों का शिकार बना दे, आपको पता ही नहीं चलता है। मीडिया जगत की ऐसी कहानियां बाहर न आने से सच दबा ही रह जाता है। क्योंकि वास्तव में खबरनवीसों की खबर लेने वाला कोई नहीं है।

इसीलिए मुझे लगता है कि तरुण भाई की आत्महत्या को केवल कोरोना पॉजीटिव या बीमारी वाले चश्मे से देखना ठीक नहीं है। चूंकि उसकी असामान्य मृत्यु से सवाल उठेंगे,  संस्था की जवाबदेही तय होगी, उसकी साख पर बट्टा लगेगा। इसलिए खबर पचा ली जाएगी। वास्तव में विकट परिस्थितियों से उपजी आत्महत्या बस एक साधारण मौत बनकर रह जाएगी। वो कत्ल ही श्रेणी में कभी नहीं आ पाएगी। क्योंकि ये कभी साबित नहीं होगा कि मरने वाले ने जिंदगी को खत्म करने का फैसला अपने पूरे होशोहवास में नहीं, बल्कि परिस्थितियों के सामने घुटने टेककर बदहवास होकर किया है। एक बार फिर असली कातिल जिंदा रह जाएगा, वो फिर जिंदा रह जाएगा।

नोट : मैं व्यक्तिगत रूप से तरुण जी को नहीं जानता हूँ।  लेकिन मीडिया संस्थानों के चाल-चरित्र और पूरी व्यवस्था को लगभग डेढ़ दशक करीब से देखा-समझा है। 

© दीपक गौतम

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