मेरी आवारगी

हम कभी नहीं कह पाएंगे तरुण भाई कि आपको पूरा इंसाफ मिलेगा !


कल ही लिखा था कि खबर नहीं छपेगी। आज का दैनिक भास्कर उठाकर देख लीजिए। दिल्ली के अलावा एकाद और एडिशन को छोड़कर कहीं और सिंगल कॉलम खबर  भी नहीं है। अपनी संस्था के पत्रकार की एम्स में हुई संदिग्ध मौत की एक सिंगल कॉलम की खबर ऑल एडिशन नहीं जा सकी है। ये वही पत्रकार है, जो इस अखबार के लिए खबरें लिखते हुए ऑन ड्यूटी मार दिया गया। बहुत कुछ सन्देह के घेरे में है। जिस तरुण सिसोदिया का आज इस पूरी व्यवस्था ने कत्ल कर दिया है। उसी ने यदि कोई बड़ा सम्मान हासिल कर लिया होता, तो यही अखबार बखूबी मार्केट करता और लिखते नहीं थकता कि हमारी संस्था के फलां-फलां ने कीर्तिमान  रच दिया है। हमारी ही तरह संस्थाओं का भी बहुत दोहरा चरित्र है। भला हो सोशल मीडिया का कि खबरें दबा पाना अब सम्भव नहीं है। शायद इसीलिए कुछ चैनल और ऑनलाइन पोर्टल्स ने मारे शर्म के खबर चलाई है।

अभी कुछ रोज पहले ही सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की। पूरे देश का मीडिया एक सुर से फ़िल्म जगत के भाई-भतीजावाद से लेकर और न जाने कौन-कौन से एंगल पर रिसर्च कर आत्महत्या को कत्ल करार दे रहा था। लेकिन ऐसी सुर-ताल एक पत्रकार की मौत पर आपको नहीं दिखेगी। क्योंकि खुद को आइना दिखाना इतना आसान नहीं है। अपनी असली शक्ल देख पाने का साहस इन संस्थानों के पास कहां है? अब इक्का-दुक्का को छोड़कर कहीं विमर्श या डिबेट होती नहीं दिखेगी कि आखिरकार कैसे, क्यों और किन परिस्थितियों में तरुण भाई ने ऐसा कदम उठाया। इसके पीछे उनका संस्थान, वो व्यवस्था, एम्स और हमारा समाज दोषी नहीं है ? ये सारे प्रश्न शायद अनुत्तरित ही रहें। थोड़ी बहुत तेजी के बाद मंत्रालय ने 24 घंटे में रिपोर्ट  तलब करने के आदेश दिए हैं। कुछ और हो-हल्ला हो जाएगा। फिर इतिश्री के बाद एक गहरी खामोशी छा जाएगी। क्योंकि एक पत्रकार साथी की मौत पर देश का मीडिया एकमत कभी नहीं दिखेगा ? हम एक हैं का नारा यहां कभी नहीं सुनाई देगा। क्योंकि हम अपने लोगों की पीड़ा में भी एक नहीं हैं। सेठ जी ने हमारी भूख पर अपनी रोटी दे मारी है और हमारी आत्मा लगातार मर रही है। इसलिए हम कभी एक नहीं हो पाएंगे। कभी नहीं कह पाएंगे कि तरुण भाई आपको पूरा इंसाफ मिलेगा..!

© दीपक गौतम

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