तस्वीर साभार : गूगल |
ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के विलय से बनी इस भाजपा सरकार के सभी घटनाक्रम बड़े रोचक रहे हैं. इसीलिए राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि सरकार में शिवराज हैं, लेकिन चल सिंधिया की रही है. ताजा उदाहरण मंत्रिमंडल के गठन में देखने को मिल ही गया है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी तंज कसते हुए इस ऐतिहासिक 'मंत्रिमंडल विस्तार' पर ट्वीट किया है कि "लोकतंत्र के इतिहास में मध्यप्रदेश का मंत्रिमंडल ऐसा मंत्रिमंडल है, जिसमें कुल 33 मंत्रियो में से 14 वर्तमान में विधायक ही नहीं है. यह संवैधानिक व्यवस्थाओं के साथ बड़ा खिलवाड़ है. प्रदेश की जनता के साथ मज़ाक है." पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का यह ट्वीट वास्तव में यही दर्शाता है कि इस तरह के मंत्रिमंडल विस्तार की आखिर क्या मजबूरी क्यों थी ? क्या सिंधिया जी के इशारे पर इस विस्तार को मंजूरी दी गई है?
दरअसल, इस मंत्रिमंडल विस्तार के पीछे आगामी उपचुनावों की पटकथा लिखी गई है. क्योंकि 24 सीटों पर होने वाले उपचुनावों में से 16 सीटें अकेले ग्वालियर-चंबल की हैं, जिनको जीतने का सारा दारोमदार सिंधिया जी के कंधों पर ही है. क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में यहां के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को सिंधिया से मुंह की खानी पड़ी थी. अब इस बार यह देखना बड़ा रोचक होगा कि स्थानीय भाजपा व कांग्रेसी कार्यकर्ताओं सहित जनता का मानस किस ओर शिफ्ट होता है. यह सबसे बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर निकट भविष्य में ही मिलेगा. बदलते घटनाक्रमों के बीच उपचुनावों के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा यह भी कोई नहीं जानता है.
बहरहाल, भविष्य की इन सम्भावनाओं के इतर एक बात तय है कि इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में बढ़ते कद से कांग्रेस और भाजपा दोनों में हलचल है. सीएम समेत 33 मंत्रियों में से 14 पूर्व कांग्रेसियों को पद मिलना (जो विधायक भी नहीं हैं) की घटना राजनीतिक इतिहास है. इसलिए राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि भाजपा में सिंधिया का बढ़ता कद कांग्रेसी और भाजपाई दोनों दलों के नेताओं को परेशान कर रहा है। कांग्रेस की ओर से आ रही प्रतिक्रियाएं तो क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया के सिद्धांत से उपजी हैं, फिर भी इनका मन्तव्य समझना आवश्यक है. कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने हाल ही में सिंधिया समर्थक मंत्रियों को राजस्व विभाग न दिया जाने की सिफारिश सीएम शिवराज से की है. उनका कहना है कि "यदि राजस्व विभाग दिया तो फिर जमीनों की खुर्दबुर्द हो जाएगी. सिंधिया का नजर जमीनों पर है. ग्वालियर में उन्होंने जमीनों पर कब्जा किया है." यह विरोध सिंधिया के बढ़ते कद का ही है कि कांग्रेसी विपक्ष की भूमिका में भी नसीहतों के सहारे सिंधिया पर तंज कस रहे हैं.
अब असंतोष और विरोध के यह स्वर सत्तारूढ़ दल भाजपा के अंदरखाने से भी उठने लगे हैं. ताजा मामला पाटन से विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता अजय विश्नोई का है, जिन्होंने ट्वीट करते हुए न केवल मुख्यमंत्री को चेताया है, बल्कि कहीं न कहीं अपना विरोध भी दर्ज करा दिया है. उन्होंने लिखा है कि ''पहले मंत्रियों की संख्या और अब विभागों का बंटवारा. मुझे डर है कहीं भाजपा का आम कार्यकर्ता हमारे नेता की इतनी बेइज्जती से नाराज न हो जाए. नुकसान हो जाएगा." इसके पहले भी अजय विश्नोई एक पत्र लिखकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को मंत्रिमंडल विस्तार में माहाकौशल और विंध्य क्षेत्र की हुई अनदेखी को लेकर चेता चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती भी इसको लेकर अपना असंतोष जाहिर कर चुकी हैं. विरोध और असंतोष के यह अंकुर पार्टी में फूट चुका है. यदि इसे और विस्तार मिला तो आगे चलकर यह घातक सिद्ध हो सकता है. चिंगारी कब भीषण आग का रूप ले ले, पता नहीं चलता है. असंतोष की यह चिंगारी मंत्रिमंडल के विस्तार से उपजी है, जिसका सारा दारोमदार इस बात पर है कि उपचुनावों का परिणाम क्या होगा ? क्योंकि उपचुनावों के परिणाम ही सूबे की राजनीति का रुख तय करेंगे. इसलिए असंतोष की इस लहर को पैदा करने वाला यह मंत्रिमंडल विस्तार कहीं भाजपा के जी का जंजाल न बन जाए इसकी भी आशंका है.
© दीपक गौतम
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