मेरी आवारगी

यहां पत्थर बोलते हैं

ये है विश्व धरोहर एलोरा की गुफाओं में से एक कैलाश मंदिर
तीन दिनों की एक मस्ती भरी घुमक्कड़ी का छोटा सा लम्हा मित्र सुमित पाण्डेय के औरंगाबाद आने पर जीने को मिला. छोटा ही कहूंगा क्योकि यहां देखने के लिए जो है वो भारत का  वैभवशाली इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर है. इसे इतने कम समय में देख पाना और समझ पाना सम्भव नहीं है. इस पोस्ट को और विस्तार दिया जाएगा, कुछ और रोचक तथ्यों के साथ जैसा कि मैंने एलोरा की गुफाओं को देखा। सबकी आंखों के चश्में अलग हैं, तो जाहिर है नजारे भी अलग होंगे। 

एलोरा की गुफाएं अद्भुत शिल्प का नमूना हैं, किसी कवि की कल्पना से भी ज्यादा कल्पनाशील और बेहद खूबसूरत. मराठी में वेरुल लेणी और अंग्रेजी में इन्हें एलोरा केव्स के नाम से जाना जाता है देश की विश्व धरोहरों में से एक. मेरे वर्तमान ठिकाने औरंगाबाद महाराष्ट्र कि हद और जद में. शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर यहां 34 गुफाएं हैं. यह 16 नम्बर का कैलाश मंदिर है, जो पूरी तरह से शिव शिल्प को समर्पित है. आठवी शताब्दी में बना यह मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा मंदिर है, जो एक ही चट्टान से निर्मित है. इसका निर्माण राष्ट्रकूट वंशजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी कराया था. लगभग 200 साल में इसे कारीगरों ने बड़ी मेहनत से तराशा था. आज यह जिस रूप में हमारे सामने है हो सकता है यह इसका बचा अवशेष मात्र हो, लेकिन जो भी है देखकर बस ऐसा लगता है पत्थर भी बोलते है. सबसे अद्भुत है यह देखना और समझना कि एक पहाड़ को काटकर, तराशकर बनाया गया अनोखा शिल्प. शायद आज के कारीगरी दौर में भी सम्भव न हो सके ऐसा अनोखा सौन्दर्य और कल्पनाशील निर्माण. इसे देखकर उस समय के वास्तु और इंजीनियरिंग के उत्कृष्ट होने का प्रमाण मिलता है. एक बड़ी पर्वत शृंखला पर अन्दर पूरे मंदिर, चौक, परकोटे, खम्भे, मूर्तियाँ और मंजिलादर गर्भगृह का बना होना आपको आश्चर्य में डाल देता है. विशालकाय देवी देवताओं के अंकित चित्रों के बीच दीवार पर उकेरे गए छोटे शिल्प भी आपको ठहरने पर विवश कर देते है. यह शिव को समर्पित 16 वा मंदिर है, जिसमे नंदी सहित शिव के लगभग सभी रूपों और मुद्राओ का वर्णन है. इसे देखना अपने आप में बेहद सुकून भरा और सुंदर अनुभव था. आगे के पोस्ट पर आपको कुछ और बताने कि कोशिश करूंगा फ़िलहाल बस इतना ही कि पत्थर बोलते है.

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