मेरी आवारगी

कुंडी भंडारा- एक अद्भुत जलप्रदाय योजना

बुरहानपुर जैसा मैने देखा   
 देश का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर अपने सुनहरे अतीत के लिए जाना जाता है। महाराष्ट्र की सीमा से सटा हुआ यह इलाका अपनी पुरातत्व की धरोहरों के लिए खासा प्रसिद्ध है, साथ ही यहां कुछ ऐंसा अनोखा भी है जो दुनिया में कहीं और नहीं है। हम आपको बताने जा रहे हैं विश्व की एकमात्र जीवित बची अनोखी जलप्रदाय प्रणाली के बारे में, जिसे कुंडी-भंडारा के नाम से जाना जाता है। (यह ठीक बांसुरी की तरह है, जिसमें सुर छिद्रों की जगह जमीन पर कुंडियां बनाई गई हैं और वायु प्रवाह करने वाले बांसुरी के एक सिरे से प्राकृतिक स्त्रोत का पानी रिस-रिस कर उस पर बहता हो, फर्क सिर्फ इतना है कि इसका दूसरा सिरा बंद है।)
कुंडी भंडारा का ऊपरी नजारा

क्या है कुंडी-भंडारा
कुंडी का शाब्दिक अर्थ है कुंड और भंडारे का समूह या झुंड। इसे मिलाकर देखा जाए तो कुंडो का समूह है कुंडी-भंडारा। जमीन के 80 फीट अंदर तकरीबन एक से ढेड़ किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा छोटी सी नहर बनी है, जिसके सबसे शुरुआती सिरे से झरने की तरह पानी रिसता है, और पूरी सुरंग में आखिरी सिरे तक बहकर भर जाता है। इस सुरंग के ठीक ऊपर जमीन पर 10& छोटे कुएं या कुंडियां बनाई गई हैं, जिससे स्थानीय रहवासी जलआपूर्ति आज भी कर रहे हैं। मुगल शासक अब्दुल रहीम खानखाना ने 1615 ईस्वी में पानी की किल्लत के चलते इसे बनवाया था। जानकारों के मुताबिक उस समय ऐसी प्रणाली केवल ईरान-ईराक के पास थी। वर्तमान में इसे नगर निगम और मप्र पर्यटन विकास निगम के द्वारा संरक्षित किया जाता है।  
साल 2010 में यहां जाने का मौका मिला
 विश्व में अकेली ऐसी जीवित जल-प्रणाली
लिफ्ट का ऊपरी ठीहा जो जमीन के नीचे तक जाता है
बुरहानपुर नगर निगम आयुक्त संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि समूचे विश्व में जीवित बची यह एक अकेली अद्भुत जल प्रणाली है। ईरान-ईराक में कुछ ऐसी जल प्रणालियां उस दौर में थीं, लेकिन वर्तमान दौर में वह सब सूख चुकी हैं। उनका जल रिसाव बंद हो चुका है। उन्होंने बताया कि शहर के एक छोर पर होने और यातायात का बेहतर इंतजाम न होने से यहां पर्यटकों का जमावड़ा कम लगता है। बाकी जानने वाले लोगों का यहां तांता लगा रहता है। बारिश के दिनो में सुरंग पर पानी तकरीबन 5 फुट तक बढ़ जाता है। दूसरे मौसम में & फुट का जलस्तर इसमें बना रहता है।
ये वो लिफ्ट है जिससे नीचे उतरा जाता है
 कौतूहल का विषय
ठीक नीचे पानी के उद्गम स्थान पर साल 2010 की एक दोपहर
यह पानी एकत्र करने के लिए जमीन के नीचे बने टैंक का ऊपरी दृश्य है
तकनीक के इस दौर में यह आज भी विशेषज्ञों के कौतूहल का विषय बना हुआ है कि इसमें जल स्रोत्र को जमीन के 80 फुट नीचे किस तरीके के बांधा गया कि वह दीवारों से आज भी रिस रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य इस सुरंग की दीवारों को देखकर होता है। पानी के लगातार रिसाव के बावजूद यह दीवारें किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं हुई हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने दीवारों में प्लास्टर ऑफ पेरिस का एक कोट कर दिया हो। दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि इस सुरंग की दीवारों में कैल्शियम की चट्टानों का प्रयोग किया गया है, जो पानी के लगातार रिसाव से ठोस हो गई हैं।
सरकारी बोर्ड पर उपलब्ध जानकारी
जाने का मार्ग
ऐसी सुरंग है अंदर और सल्फर कि चट्टानें, जो पानी साफ करती हैं
इंदौर से तकरीबन 170 किमी की दूरी तय करने पर बुरहानपुर पहुंचा जा सकता है। इसके लिए वाया खंडवा रोड जाना होगा। बुरहानपुर की सीमा में प्रवेश करने से पहले असीरगढ़ का वह किला आपको रास्ते में मिलेगा, जिसे दक्षिण के द्वार के नाम से आज भी जाना जाता है। इसके बारे में विख्यात है कि देश के दक्षिणी हिस्से में प्रवेश करने के लिए दुशमन को यह किला भेदना होता था। यहां जाने के लिए आप खुद का वाहन भी कर सकते हैं, चाहें तो बस के सफर का आनंद भी उठा सकते हैं। हालांकि खुद के वाहन करना ज्यादा फायदेमंद और सुकून तलब होगा। 








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