- गुरुनानक ने शुरू की थी लंगर की प्रथा
- 530 साल हो गए इस परम्परा को
- पिता ने दिए थे फायदे का सौदा करने को पैसा
- गरीबों को खिला दिया उस पैसे से खाना
दुनियाभर के गुरुद्वारे शुरू होने की कहानी काफी रोचक है, आपको ये जानकर हैरत होगी कि 530 साल पहले 20 रुपए से शुरू हुई ये लंगर की प्रथा आज तक जारी है. दुनियाभर में लाखों लोगों को मुफ्त भरपेट भोजन कराने की यह प्रथा दरअसल गुरुनानक ने 15 साल की उम्र में प्रारंभ की थी. इसके लिए उन्होंने एक प्यार भरा चांटा भी खाया, लेकिन उनका पूरा जवाब सुनकर जो ‘लंगर’ मिला वो आज मानवता के काम आ रहा है.
फायदा ही नहीं सच्चा सौदा
कथानक अनुसार उनके पिता मेहता कालू ने उन्हें 20 रुपए में फायदा का सौदा करके बाजार से वापस आने को कहा था. उनके पिता ने एक ऐसा सौदा करने को कहा था, जिससे कुछ व्यवसाय जैसा खड़ा हो सके और मुनाफा कमाया जा सके. मगर कुछ समय बाद जब गुरुनानक खाली हाथ घर वापस आए तो उनके पिता ने सौदे के बारे में पूछा. इस पर उन्होंने जवाब दिया कि आज मैं ‘सच्चा सौदा’ करके आया हूं पिता जी फायदा के सौदे से भी बेहतर. मैंने रास्ते में मिले एक भिखारियों के समूह को पंगत में बिठाकर उन पैसों से भरपेट भोजन करा दिया. इससे ज्यादा फायदा और किसमें हो सकता है, ये फायदा ही नहीं सच्चा सौदा है. कथानक अनुसार आवेग में उनके पिता ने उन्हें एक चाटा रसीद भी कर दिया था, मगर बाद में उन्हें आशीष दी कि तेरा सौदा फलीभूत हो.
पंद्रह साल के थे नानक
सिख समुदाय के कथानकों अनुसार गुरुनानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 में हुआ था. लगभग 15 वर्ष की उम्र में चूरकाना मंदिर, पाकिस्तान में यह घटना घटी थी. 1484-85 के दौरान विभाजन पूर्व जब यह घटना घटी, तब आज के पाकिस्तान का वह हिस्सा हिंदुस्तान में ही था. उस स्थान में अब ‘सच्चा सौदा, चूरकाना मंदिर गुरुद्वारा ’ बना हुआ है. इस एक कथानक के बाद ही लंगर जैसी प्रथा को लगातार दशवंत से प्रारंभ किया गया और वो अनवरत जारी है.
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