मेरी आवारगी

शून्य में रमती है वो दुनिया

औरंगाबाद की महिष्माल पहाड़ी की शाम का हमारे झुनझुने से लिया चित्र 
आँखों से नींद निचोड़ लो 
और जिंदगी से सारे ख़्वाब, 
दिन से सारी धूप चुरा लो 
और रातों से उसके अँधेरे 
क्या ऐसा संभव होगा 
सब कुछ थम जाएगा
शून्य में होगा संसार
या होगा भी नहीं शायद 
मगर तुम ऐसा सोच सकते हो
कल्पनाओं की कोई सीमा नहीं 
इसीलिए बस उड़ते रहो 
बिना किसी ओर-छोर के 
तुम्हारी उड़ान का परिंदा
एक दिन इन्ही से होता हुआ
यथार्थ की धरती पर उतरेगा
तुम उस दिन कह सकोगे 
तुमने नई दुनिया खोजी है 
वो शून्य में रमती-बसती है 
#आधा-अधूरा सा आवारा खयाल

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