मेरी आवारगी

विमुद्रीकरण, भीड़ और फर्जीवाड़ा



मुद्रा परिचालन की नई व्यवस्था (विमुद्रीकरण) से आने वाले कल का क्या होगा ये कल पर छोड़िये। आज लोग कतारों में झुलस रहे हैं ये एक तस्वीर है। देश में पर्याप्त मुद्रा है ये भी एक दृश्य है। मुद्रा जनता तक पहुंच नहीं रही ये भी एक तस्वीर है। और बैंकों या एटीएम के सामने दिख रही लम्बी कतारों में जरूरतमंद तो हैं, लेकिन उनकी जरूरतें और आवश्यक काम क्या हैं ? ये एकदम ही अलग तस्वीर है। आपको जानकर शायद हैरानी हो मगर जान लीजिए हम पढ़े-लिखे होने के बावजूद निहायती जाहिल लोग हैं।

अखबार से लेकर चैनल तक सब लगातार सटीक सूचनाएं पहुंचा रहे हैं, लेकिन लोग 'नोट बदलना जरूरी है' केवल यही सुनकर कतार में हैं। कब तक बदलना है? क्यों बदलना है ? ये सब पता ही नहीं है क्योंकि उन्हें सोशल मीडिया ज्यादा विश्वसनीय लगा बनिस्बत अन्य मीडिया के। सूचना आमजन तक सही से न पहुंचना भी एक खामी है। पर्याप्त धन सिस्टम में है और लोगों तक नहीं पहुंचना भी बदइंतजामी है, लेकिन केवल 4 नोट बदलने के लिए घण्टों कतार में लगना भी अक्लमंदी नहीं है। वो भी तब जब आपके पास डेबिट या क्रेडिट कार्ड है। और वो लगभग जगह स्वैप हो रहा है।

 

यहाँ औरंगाबाद में बीते तीन दिन से लगभग बैंकों या एटीएम के सामने लगी भीड़ का एक हिस्सा ऐसा भी मिला है, जो चार दिन और बिना नोट बदले या कार्ड स्वैप से जिंदा रह सकता था। मगर उसे सेल्फी की जल्दी थी दो हजार की गुलाबी नोट के साथ, किसी लौंडे को दारू नहीं मिल रही थी, क्योंकि हर वाइन शॉप में कार्ड चले जरूरी नहीं और 500-1000 के नोट वाली शक्ल का कैश भी नहीं लिया जा रहा था। जिस बियर बार या रेस्टोरेन्ट में कार्ड से मदिरापान हो सकता था वो उनकी औकात का नहीं था। काहे से कि वो मध्यम वर्गीय लौंडे थे और महाराष्ट्र के सुदूर किसी कोने से यहाँ औरंगाबाद में मेडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पड़े हैं।


चार दिन से ये शहर घूम रहा हूँ कम से कम यहाँ के लिए तो दावे से कह सकता हूँ, अज्ञानता के दबाव में भी खासी भीड़ उपजी है। कई कतारों में अनपढ़ महिलाएं और बुजुर्ग ऐसे भी मिले जिन्हें 50 दिन तक नोट बदले जाने की सूचना ही नहीं थी। उन्हें टीवी में देखकर लग रहा था कि पूरा देश बदल रहा है तो हमें भी इसी एक हफ्ते के अंदर बदलना चाहिए। चूंकि लोकतंत्र है और सरकार हर काम के लिए जवाबदार और जिम्मेदार है इसलिए अगर जनता केवल अफवाह सुनकर 400 रुपये किलो नमक खरीदने के लिए मिनटों में पगला जाए तो उसे माफ़ किया जाना चाहिए। क्योंकि जनता के जाहिल होने में भी सरकार की ही गलती है। 

बावजूद इसके जनता तक पर्याप्त कैश न पहुंचा पाने में असफल रही सरकार से, उनके इस कदम के लिए जनता को त्याग-बलिदान और कालाधन की कहानियों या अर्थव्यवस्था के स्वर्णिम भविष्य वाला राग सुनाए जाने के पक्ष में नहीं हूँ मैं। इससे कतई ये न समझें कि जनता परेशान नहीं है। मैंने परेशानी के इतर ये पक्ष बस इसलिये लिखा क्योंकि ये एंगल कहीं रिपोर्ट नहीं हुआ है। और परेशानी तो सब रिपोर्ट कर रहे हैं। जनता के दर्द के साथ उसके एक हिस्से द्वारा की जा रही परेशानी मोल लेने वाली ये मूर्खता भी तो दिखाई जानी चाहिए।


बाकी मैं सरकार की इस बदइंतजामी का समर्थक बिल्कुल नहीं हूँ। एक चीज और गाँठ बाँध लीजिये कि देश में काला धन केवल नोटों की शक्ल में नहीं है। है भी तो एक मामूली सा हिस्सा। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि बंडल भरकर लोगों छुपाए जाने वाले नोट ही कालाधन होते हैं, तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है। सराफा से लेकर रियल एस्टेट और शेयर बाजार तक हर जगह काला धन कब का सफेद हो चुका है। और उसको सफेद करने के ढेर लीगल प्रोसीजर हैं।


फेसबुक पोस्ट विमुद्रीकरण पर नोट फोकट जियो के हाईस्पीड इंटरनेट के लिए 'यो-यो पीढ़ी' के कतारों में घण्टों लगे रहने वाले युवा माँ-बाप या परिजनों को इन कतारों में न जाने दें। और भक्त लोग दिमाग खोलकर पढ़ें जनता को समान मात्रा में सहूलियत देकर त्याग और बलिदान की बातें हों तो बेहतर है।

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