दुनिया में आग लगे तो लगती रहे मैं भी नीरो की तरह फिलहाल प्रेम की बंशी ही बजाना पसन्द करूँगा। क्योंकि जब धरा में कुछ नहीं था तब भी प्रेम था और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी सिर्फ प्रेम ही बचेगा। मैं तुम्हारी नशेमन आँखों के नशे में हूँ और जीवन भर इसमें झूमना चाहता हूँ। रात जैसे-जैसे जवान होती है, इश्क और आवारगी का नशा मेरी रूह में चढ़ता है। ये रातें इश्क की चाँदनी में नहा जाती हैं और मैं आवारगी के लिबास में लिपटा कीमियागर हो जाता हूँ। किसी पारस पत्थर की मानिंद तुम्हारी आँख के पोर से कजरे सा बहना चाहता हूँ। मैं रगों में बहते इश्क में बहक जाना चाहता हूँ , कोई खता हो तो माफ़ करना हुजूर। मैं यूँ ही दरबदर था और बस यूँ ही इश्क की ठोकर में रहना चाहता हूँ। ये इश्क का लबादा हर मौसम में काम आता है। देखो न सर्द मौसम में मैं इससे मोहब्बत की तपिश महसूता हूँ और बीती गर्मियों में भी मैंने इसे जी जुड़ाने वाले किसी सूती कपड़े सा ओढ़ रखा था।
मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गांव जसो में जन्म। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में 'मास्टर ऑफ जर्नलिज्म' (एमजे) में स्नातकोत्तर। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता। लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए क्रिएटिव राइटिंग। इन दिनों स्वतंत्र लेखन में संलग्न। बीते 15 सालों से शहर दर शहर भटकने के बाद फिलवक्त गांव को जी रहा हूं। बस अपनी अनुभितियों को शब्दों के सहारे उकेरता रहता हूं। ये ब्लॉग उसी का एक हिस्सा है।
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