तुम्हारी सुबहों में घुलने के लिए अक्सर वो नींद के आगोश वाली अलसाई आवाज सुनने का जी करता है। ये सवेरे तुम्हारे साथ हों न हों कानों में तुम्हारी आवाज की मिसरी का दो-चार बून्द शहद टपक जाता है, तो पूरा दिन मीठा हो जाता है। मैं तुम्हें हर लम्हे जीना चाहता हूँ, सुबह की पहली किरण से लेकर फलक पर चाँद की चांदनी बिखरने तक। जिंदगी की काली रातों से लेकर उजले सवेरों तक मुझे बस तुम चाहिए...सिर्फ तुम। क्योंकि तुम जिस्म का नहीं मेरी रूह का लिबास हो हमदम, ऐ मेरी आवारगी के लबादे मैं तुझे आखरी सांस चुकने तक ओढ़े रखना चाहता हूँ। वजूद का मखमली अक्स बनने के लिए शुक्रिया मेरी जान।
मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गांव जसो में जन्म। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में 'मास्टर ऑफ जर्नलिज्म' (एमजे) में स्नातकोत्तर। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता। लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए क्रिएटिव राइटिंग। इन दिनों स्वतंत्र लेखन में संलग्न। बीते 15 सालों से शहर दर शहर भटकने के बाद फिलवक्त गांव को जी रहा हूं। बस अपनी अनुभितियों को शब्दों के सहारे उकेरता रहता हूं। ये ब्लॉग उसी का एक हिस्सा है।
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