मेरी आवारगी

मैं अल्फ़ाज़ हो जाना चाहता हूं...!!


(तस्वीर हमारे झुनझुने से कालांतर में बड़ी झील भोपाल पर ढलता सूर्य)

मैं अल्फ़ाज़ हो जाना चाहता हूं...!!
***
मैं शब्द-शब्द झरता रहा
तुमने मौन साध रखा था।
हमारे बीच का सूनापन
बस कोई मायाजाल था।
हमारे बीच से ही गुजरा वो हवा का झोंका
तुम्हारी छुअन का अहसास देकर।
कोई धूप का टुकड़ा तुम्हारी हथेलियों
से फिसलकर मुझ पर गिरा।
ये कुदरत के सबसे खूबसूरत अल्फ़ाज़ हैं।
तुमसे अक्सर अब यूँ ही रूबरू हूँ मैं।
यही तो वक्त का महीन फरेब है।
हर लम्हा तुम्हारे साथ होकर तन्हा रहूं।
नहीं ! मैंने स्वीकार लिया है तुझमें घुला होना।
मैं बस वो अल्फ़ाज़ हो जाना चाहता हूं।
जिसे पढ़कर किसी रूह को ठंडक मिले,
जिंदगी बस एक कविता हो जाए, जो लम्हों में गुज़रे
और हर ख़ता का पता मिले।
अश्क छलकें भी तो इस कदर कि
रूहानियत को हवा मिले।

© आवारा

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