मेरी आवारगी

कुछ चिट्ठियां के कभी जवाब नहीं आते !

चित्र साभार : गूगल बाबा

चित्र साभार : गूगल बाबा

एक कलाकार जितने किरदार जीता है, उसके दुनिया से जाने के बाद वो सारे किरदार उसके चाहने वालों के आस-पास तैरने लगते हैं। जैसे वहां की हवा वो उन तमाम यादों का धुआं हो जिसमें फिलवक्त आप सांस ले रहे हैं। मेरे लिए अपने चहेते कलाकारों को याद करना तो कुछ ऐसा ही है। उनके जीवित रहते तो आप उन्हें देखते-सुनते हुए यादों का समंदर रचते रहते हैं, लेकिन उनके जाने के बाद आप बस उस एक धुंध में होते हैं, जो छटती ही नहीं है। उनके बोलने का अंदाज, हाव-भाव, उनके पर्दे पर जिये किरदार सब आपके आस-पास नाचते रहते हैं। मन के पर्दे पर एक अलग ही तरह की फ़िल्म चल रही होती है, जिसकी रील सालों से आपके अंदर थोड़ा-थोड़ा करके जमा हो रही थी। और अब उस फिल्म का पटाक्षेप होने जा रहा है, उसका आखरी दृश्य जैसे  कुदरत ने फिल्मा दिया है। बस यही उसका अंत है।

ऐसे वक्त में मन बहुत भारी हो जाता है। इसलिए नहीं कि हमारे चहेते कलाकारों के अभिनय ने हमारे अंदर घर कर दिया है या उनके जिये किरदार हमारी रूह पर अपने दस्तख़त करके चले गए हैं। इसलिए भी नहीं कि दुनिया में घटी कुछ सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्मों से वो हमसे और हमारे अंतस से रूबरू हुए थे या कभी हमें गहरे झगझोड़ा था। वो इसलिए है कि उनके हर जिये किरदार को एक आम दर्शक ढाई या तीन घंटे में कई बार खुद भी पूरा का पूरा जी जाता है और वो उससे एक ऐसा रिश्ता कायम कर लेता है, जो कभी टूटता ही नहीं है। अपने चहेते कलाकार की हर वो देखी फिल्म जिसे आपने जिया हो, वो किरदार जो आपके दिल के करीब रहा हो। यूँ लगता है जैसे वो आपसे बातें करता है। आप उस किरदार ही नहीं बल्कि पूरी की पूरी शख्सियत से अपना एक अदद रिश्ता बना लेते हैं। ये अनाम रिश्ता भी केवल आपका अपना ही है, जिसे केवल आप ही जीते हैं। ऐसे रिश्तों को शायद किसी और की जरूरत भी नहीं होती है।  वो तो खुद ही जिये जाते हैं। एक आम आदमी फिल्मी पर्दे पर अपने चहेते नायकों के साथ कहानी के किरदारों को कुछ ऐसे ही जी जाता है कि उसके जाने के बाद सब कुछ छूट गया सा लगता है, टूट गया सा लगता है। ऐसे रिश्तों का बस एक ही आधार होता है, हमारी भावनाएं जो हमें हर उस किरदार से जोड़ देती हैं, जो पूरी ईमानदारी और सच्चाई से जिया जाता है। कहते हैं कि एक उम्दा किरदार की खुशबू से पूरी की पूरी कहानी ही महक उठती है। इरफ़ान खान और ऋषि कपूर जैसे कलाकारों ने कई कहानियों को अपने अभिनय से यूँ गढ़ दिया है कि वो अपने वक्त में अदाकारी का सबसे खूबसूरत हस्ताक्षर बन गई हैं।

मेरे अंदर भी अपने चहेते किरदारों और उन कलाकारों के अनाम रिश्तों का ऐसा ही संसार है, जो हर उस कलाकार के दुनिया से जाने के बाद दरक जाता है। बीते कुछ सालों में इसमें कई दरारें पड़ गई हैं। साल दर साल अपने चहेते कलाकारों या लेखकों का जाना हमेशा गहरा अवसाद दे जाता है। कल इरफान खान और आज ऋषि कपूर का जाना भी कुछ ऐसा ही है। इनका जिया हर वो किरदार जो लोगों के दिलों के करीब है, उससे ये अनाम रिश्ते बस मैंने ही नहीं बनाए हैं। मेरे जैसे और भी कई होंगे, जिन्होंने बिना जवाब पाने की इच्छा के अपने किरदारों से कभी बतकही भी की होगी तो कभी मन ही मन ढेर चिट्ठियां भी लिखी होंगी। ये और है कि लिखी गई ऐसी चिट्ठियों के कभी जवाब नहीं आते ...!! 

फिर भी ये चिठ्ठियां हमेशा लिखी जाती रहेंगी, क्योंकि संवेदनाओं का संसार बड़ा निराला है। और भावनाएं बहुत प्रबल होती हैं। आपसे वे कुछ भी करा सकती हैं। मन ही मन कभी आपने भी शायद इरफ़ान खान या ऋषि कपूर साहब को चिट्ठी लिखी हो, लेकिन जवाब पाने का कभी इंतजार भी न किया होगा। यही इन अनाम रिश्तों की खूबसूरती है कि कभी अलविदा न कहना...!!

©दीपक गौतम

#एकआवाराकीडायरी

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