तस्वीर अपने झुनझुने से / कविता साभार सचिन जैन सर |
आवारा होना
एक बड़ी जिम्मेदारी है
गैरजिम्मेदार आवारा
शिकारी मर्द बन जाते हैं,
और औरत उनकी शिकार,
उनकी ज़ुबाँ पर
संक्रमण हो जाता है अपशब्दों का,
आवारगी वक्त होती है
मध्यरात्रि के चंद्रमा से मुलाकात का,
आवारगी वक्त होती है
दुविधाओं से खुल कर बात करने का,
आवारगी अपराध नहीं होती है,
जिस तरह से हमने बाँध लिया है
सुबह को, शाम को लक्ष्यों में
उन लक्ष्यों से मुक्त होने का
निमित्त होती है आवारगी,
लताओं को, गौरैय्या की, गिद्ध को
दो पेड़ों के बीच बने मकड़ी के घर को
देखने के लिये होना पड़ता है आवारा,
हममे धसीँ हैं जो अपेक्षाएं दुनिया की
उन काँटों की निकाल फेंकने
होना पड़ता है आवारा,
आठों पहर औरत के लिये भी होते हैं
सूरज भी होता है चाँद भी
दिन का शोर भी और रात का सन्नाटा भी
बराबरी का खगोल विज्ञान होती है आवारगी,
जो आवारा होते हैं, वो अपराधी नहीं होते,
जीवन के मायनों की खोज में
जुटने का एक रास्ता है आवारा होना,
आवारा घरों में नहीं
स्वयं में लगाते हैं सेंध और
तोड़ देना चाहते हैं जड़ता को,
नयी पगडंडियों के निर्माता होते हैं
वो जो आवारा होते है
आवारा दिशाओं में भेदभाव नहीं करते हैं
आवारा पूर्वाग्रह के सिद्धांत को
नहीं मानते,
आवारगी एक जिम्मेदारी होती है।
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