मेरी आवारगी

हंसना हौसला देता है, लेकिन यह बेहतरी का सबूत नहीं : सचिन श्रीवास्तव

सचिन श्रीवास्तव
घर में ही खुलता है पहला मोर्चा

हमारे आपके घरों में सफलता के पैमाने बिल्कुल निश्चित हैं। इसमें शामिल होती है एक चमचमाती कार, एक सपनों का घर, बॉस जैसा रुतबा देने वाली नौैकरी और सोशल मीडिया पर अपलोड की जा सकने वाली तस्वीरों वाली ज़िन्दगी।

इसके बिना आप काहिल हैं, कमजोर हैं, दुनिया की समझ नहीं, असफल हैं।

अगर आप एक आदमी हैं तो आपको पैसे कमाने का हुनर आना चाहिए। यही प्राथमिक शर्त है। और इतना पैसा कि उससे "चालू खुशियों" का एक बड़ा जखीरा ख़रीदा जा सके। अगर आप पैसे नहीं कमाते तो आप आर चेतन क्रांति की कविता के नागरिक हैं यानी पैसे न कामना ऐसा ही है कि "आप जेम्स वाट हैं और रेल का इंजिन नहीं बना रहे हैं"।

पैसे कमाने के लिए आपको ताकतवर लोगों की संगत, कमजोर को बेवकूफ बनाना, लोगों की झूठी तारीफ, उनकी जी हुजूरी भी करनी ही चाहिए। इस पर लगभग आम सहमति है।

किसी चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की काबिलियत अच्छी तो है लेकिन आपके कामयाब होने का सबूत नहीं। किसी कमजोर के हक में लिखने का हुनर इंसान बना सकता है कामयाब नहीं।

मुश्किल वक़्त में हंसने का हौसला आपको अनूठी ताकत देता है, लेकिन यह बेहतरी का सबूत नहीं।

आप बस पैसे कमाओ, बाकी किसी चीज पर ध्यान देने की जरूरत नहीं।

दिलचस्प ये है कि कोराना काल में यह दबाव बेतरह बढ़ने वाला है, बढ़ चुका है। तो या तो व्यवस्था के सामने नतमस्तक होकर अपनी रीढ़ को तोड़ दीजिए या फिर जो इस दबाव को नहीं सह सकते वो अपनी सुविधा से आत्महत्या के बेहतर तरीके चुन लें।

#कोरोना_का_बहाना

© सचिन श्रीवास्तव 

यह पोस्ट सचिन जी की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।

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