बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति॥
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
भावार्थ : इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती है!
इन दिनों शायद अपने जीवन पर भी तुलसी बाबा की श्रीरामचरितमानस में लिखीकी यही चौपाई लागू हो रही है। मैं तो रामजी का सेवक हूँ, उनका लेश मात्र भी नहीं। लेकिन कहते हैं कि परमार्थ करना प्रभु का ही काम है। अब यदि ऐसे परमार्थ के कार्य में प्रभु का सेवक ही उलझ जाएगा, तो उसे तो प्रभु के बताए आचरण का तो अनुसरण करना ही पड़ेगा।
इन दिनों मैं भी ऐसे ही किसी समुद्र के सामने बीते 2 माह से विनय से हाथ जोड़े खड़ा हूँ, लेकिन वो अपने ऊपर पुल बांधने का उपाय बताना तो दूर लंकेश को बचाने पर ही आमादा है। अब जब प्रभु श्रीरामजी का धीरज तीन दिन में टूट गया था। वो लक्ष्मण जी से धनुष मंगाकर समुद्र सुखाने के लिए बाण संधान करने लगे थे। फिर मैं तो भला साधारण सा मनुष्य हूँ। ये बात और है कि दो माह भी मैंने अब तक धीरज नहीं खोया है।
इसलिए मुझे लगता है कि मेरे बाण संधान करने से पहले समुद्र को सामने आकर उपाय सुझाना चाहिए, उसकी बड़ाई इसी में है। लंकेश ने शिव जी को भले लंका में बिठा रखा था, लेकिन शिव जी स्वयं रुद्रावतार के रूप में प्रभु श्रीराम की सेवा में लगे थे। इसलिये समुद्र से अब भी मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि यही केश को बचाने की बजाय पुल बनाने जैसा कोई मार्ग सुझाये। अब यदि समुद्र देवता अब भी न सुनेंगे तो और कितने रोज हाथ जोड़े खड़ा रहूँगा।
सुनो समुद्र देव ! अब आप भी प्रकट हो जाओ और अपनी हिलोरों के साथ कुछ हीरा-जवाहरात निकाल लाओ। कुछ विनम्रता दिखाओ। मेरे हाथ जोड़ने को मेरी कमजोरी न समझ लेना ! क्योंकि अब मेरा सब्र, धैर्य और संयम सब जवाब दे रहा है। मैं अपना आपा खो रहा हूँ। सुनो समुद्र देवता सुनो...पुकार सुनो...मुझे रास्ता दो...अब मैं बहुत अधीर हो रहा हूँ 😢
आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
© दीपक गौतम
- 26 जनवरी 2021
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