किसान आंदोलन को जनपथ और दी कारवां के लिए सक्रिय तौर पर कवर कर रहे पत्रकार #MandeepPunia #मनदीप पुनिया की हाल ही में हुई गिरफ्तारी भी सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों को कुचलने की एक साजिश मात्र है। आखिर
सरकार की ये दमनकारी नीति कब तक चलेगी ? ये हिटलरशाही कब तक चलेगी ? ये तानाशाही कब तक चलेगी ?
राजस्थान पत्रिका में काम करते हुए एक कोट पढ़ा था। फ्रांसीसी दार्शनिक वाल्तेयर का कथन पत्रिका के एडिट पेज पर उन दिनों ऊपरी हिस्से में प्रमुखता से प्रकाशित होता था कि
"हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं। परन्तु विचार प्रकट करने के आपके अधिकार की रक्षा करूंगा।"
मोदी सरकार को चाहिए कि इसको आत्मसात करे और आलोचना से डरे बिना अपने कामकाज के आलोचक पत्रकारों के विचार प्रकट करने और खबरें लिखने के अधिकारों की रक्षा करे। शायद तभी लोकतंत्र जिंदा रहेगा। उम्मीद बची रहेगी। क्योंकि सरकार के काले कानूनों की ख़िलाफ़त में उठ रही हर आवाज़ महज शोर नहीं है। ये आवाजें एक दिन ताबूत में कील साबित होंगी।
आगे जो लिखा है, उसे पढ़ें और गुनें, क्योंकि ये क्रांतिकारी कवि "पाश" ने कभी लिखा था...
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना
ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय
कोई भी शब्द अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने
दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है ।
- अवतार सिंह संधू 'पाश'
सरकार के गलत इरादों की ख़िलाफ़त में आवाज उठाने वाले हर पत्रकार को यूँ जेल में डाल दिया जाना कतई उचित नहीं है। मनदीप पुनिया को जल्द से जल्द रिहा किया जाना चाहिए। मनदीप भाई आपकी ये तस्वीर बहुत कुछ बयां कर रही है। अपना भी जिंदाबाद रहेगा दोस्त। दिल जीत लिया।
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