मैंने पान की टपरियों पर बैठकर
तुझे शब्द-शब्द लिखा है जिंदगी।
हर रोज तुझे हर्फ-हर्फ पढ़ता हूँ।
हवाओं से तेरी खुशबुएं चुराई हैं।
रोज तेरी धुन पर नाचता रहता हूँ।
तेरे इश्क़ का संगीत मेरी आत्मा में बिंधा है।
तूने जहां मोड़ दिया बस वहीं मुड़ गया हूँ।
बेपनाह दर्द में भी तुझसे इश्क नहीं छोड़ा।
अब तो सुध भी नहीं रही कि कितनी
दफा मध्यम मौत मरा हूँ मैं।
बार-बार कत्ल हुआ है मेरा, दिल पर
खून के छीटे अब भी ताजा हैं।
जब भी झूठ और मक्कारी के तेजाब में सड़ता देखता हूँ इंसानियत का लबादा,
तो लगता है कि जिस्म की ऊपरी खाल ही छीलकर फैंक दूँ।
काश ये भरेपेट वाला तन का चोला उतारकर रख पाता किसी गरीब की भूखी आत्मा पर,
काश ये भरेपेट वाला तन का चोला उतारकर रख पाता किसी गरीब की भूखी आत्मा पर,
उसे कुछ तो सुकून मिलता या मुझे ही आराम आता।
मेरी आत्मा के घाव बहुत गहरे हैं, हर रोज
थोड़ा-थोड़ खुरंच जाती है। अब यूँ और बार-बार मरकर जिया नहीं जाता।
मेरी संजीवनी की पुड़िया से निकला
बुरादा भी बदहवास इंसानों पर छिड़कते-छिड़कते अब खत्म हो रहा है।
ये जो तूने बख़्शी है बेपनाह आवारगी की दौलत, बस इसी से खर्चता हूँ मोहब्बत।
मेरी आत्मा के घाव बहुत गहरे हैं, हर रोज
थोड़ा-थोड़ खुरंच जाती है। अब यूँ और बार-बार मरकर जिया नहीं जाता।
मेरी संजीवनी की पुड़िया से निकला
बुरादा भी बदहवास इंसानों पर छिड़कते-छिड़कते अब खत्म हो रहा है।
ये जो तूने बख़्शी है बेपनाह आवारगी की दौलत, बस इसी से खर्चता हूँ मोहब्बत।
आवारगी में दर्द सालाना सीख गया हूँ।
शायद इसीलिए हर जख्म पर तेरे इश्क़ का मरहम मलता रहता हूँ।
नासूर न बने रूह का कोई ख़्वाब, इसलिए सपनों की बखिया उधेड़कर नई-नई
तुरपाई करता रहता हूँ।
मेरी आत्मा पर पड़ी दर्द की सिलवटों को चेहरे की मुस्कराहट से सजाता हूँ।
अब जब भी बसंत आता है, तो कहता हूं कि सखी तुम ही बसंत हो जिंदगी का।
- 16 जनवरी 2021
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal
#हैप्पीबसंतपंचमी #happybasantpanchami
नोट : ये कविता तो हरगिज़ नहीं है और मुझे खुद भी नहीं पता कि ये क्या है? क्यों है ? बस विचार आते गए और ये लिख गया।
शायद इसीलिए हर जख्म पर तेरे इश्क़ का मरहम मलता रहता हूँ।
नासूर न बने रूह का कोई ख़्वाब, इसलिए सपनों की बखिया उधेड़कर नई-नई
तुरपाई करता रहता हूँ।
मेरी आत्मा पर पड़ी दर्द की सिलवटों को चेहरे की मुस्कराहट से सजाता हूँ।
अब जब भी बसंत आता है, तो कहता हूं कि सखी तुम ही बसंत हो जिंदगी का।
- 16 जनवरी 2021
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal
#हैप्पीबसंतपंचमी #happybasantpanchami
नोट : ये कविता तो हरगिज़ नहीं है और मुझे खुद भी नहीं पता कि ये क्या है? क्यों है ? बस विचार आते गए और ये लिख गया।
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