तुम्हारी छुअन से 'सोना' होना चाहता हूँ
*******************
दूर तक मीलों फैला अंधकार, रात को चीरता सन्नाटा, आत्मा को भेदता मौन।
जड़ हो चली देह के पार मृत्यु और जीवन के बीच, कहीं बची रह गई थी तुम्हारी छुअन।
बर्फ से ठंडे हो चुके थे समय के बिंब, किसी एक बिंदु पर आकर ठहरा था मैं।
तुम्हारे स्पर्श ने सब पिघला दिया है, सालों से जमा अहसास का समंदर एक साथ बह निकला है।
ये बाढ़ सी विपदा है, बीते समय के धारे उफनती नदियों की शक्ल में हैं।
हां ये बारिशों का मौसम है, लेकिन मुझे भीगने की इजाजत नहीं है।
मैं यूँ ही देर तक तरबतर रहता हूँ, तुमसे दूर रहकर।
तुम्हारी याद की बदरी है, जो झूमकर बरस जाती है।
वो यकीं दिलाती है कि तुम हो यहीं-कहीं, गर्म हथेलियों से भाप बनकर उड़ती तुम्हारी छुअन अब भी ताजा है।
मैं तुम्हें हर बारिश में यूँ ही महसूस करता हूँ।
प्रेम हमारे समय की धुंध में जज्ब हो चुका है कि उसके हस्ताक्षर शाश्वत हैं।
इसे ना मैं बदल सकता हूँ और ना ही तुम।
इस समय के पार भी सिर्फ प्रेम ही शेष बचा रहेगा।
मेरे लिए प्रेम तुम्हारे स्पर्श से उपजा है, मैं तुम्हारी आत्मा के सम्मोहन में जकड़ा हूँ।
ये धुंध और गहरी होने से पहले तुम चले आना, मैं इन हथेलियों पर फिर तुम्हारी छुअन चाहता हूँ।
मुझे ये बारिशें अब अच्छी नहीं लगीं, मैं प्रेम का साक्षात्कार पाना चाहता हूँ।
मैं तुम्हें चूमकर तुम्हारी आत्मा की छुअन चाहता हूँ। मैं कोई कीमियागिर ना सही तुम तो प्रेम का 'पारस' पारस पत्थर हो, मैं तुम्हें छूकर 'सोना' होना चाहता हूँ।
- जुलाई 2022
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal
0 Comments