मेरी आवारगी

रतिया भर अंखियन मा नींद नहीं समाई

पता नहीं का है गुरु...नींद गायब होई गई आज रतिया मा। सालन बाद आज नींद नई धंस रही गुरु अंखियन मा। मन होई रहा है अम्मा खां फोन लगाई के ओखर गारी बाली लोरी सुनें लेई । ससुर अम्मा होत हियां पास मा तो सोबाय देत बिना लोरी के, लाड़ से दुई ठो गारी देत कि 'दहिजार सो जा सुबहियां के पांच बजन लाघ हें ' बाद मा कहत कि बेटा सो जा मान जा रे...सबेरे अंखिया न उघरिहे काल फलां-फलां काम है तोही। अब्बे बंद कर टीवी सो दिप्पू बेटा सो जा चुप्पे। अब अम्मा का बताई रे तोहंसे सब उलट-पलटि गा है आपन टाइम-टेबल औ एखे सुधरें के उम्मीदो नहीं आय। पर तैं चिंता न मान...हम सुधरे हैयन...तू तो जानत हो माई थोड़ से उल्टी खोपड़िया के बचपने से रहेन हम। आपन मनमर्जी के करें बाले औ अकड़ू टाइप, ता अबहूं लौ उतनेन बिगाड़ है भितरे बाकी तो जनतिन हो कि लड़िका तुंहार कोहिनूर के पप्पा आय...हा हा हा।
अब या को कहे महितारी से कि बहुत बिगड़ गयेन रे बाहर रहि के। हालांकि मनबे न करि अम्मा बहुत लाड़ करे है...रग-रग पता है ओहि ता। अगर पता चल जाय कबहुं तो बहुते गारियाई पर माखन-मिसिरी जैसन लागत हीं गारी ओखर। अब तो ससुर कान तरसि गे गारी सुने खां। घरे जब-जब जई थे तो अम्मा चुपार हमी सोवैं के नसीहत दै के सो जात हैं आजकल , काहे से कि अब एतना गोली-दबाई चलत ही उनखर कि नींद कबे आवत ही खुदे पता नहीं कर पावैं। ससुर फर्जी नौकरिया के चक्कर मा मनई दूर है घर औ घर बालन से। चिंता न करो माई जल्दी सब छोड़-छाड़ के तुंहरे पास रहब, अब तुहीं तो शहर से एलर्जी है। गांव मा बनावा जाई दार-भात, चोखा औ बिर्रा के रोटी तोही बहुत सोंध लगत है न। अब खाना चुरावत बनें लगा है हमसे अम्मा याद करा पिछले बेरकी खाए ता रहया हमरे हांथ के ब्यंजन। हम अउब अम्मा जल्दी अउब बस तोरे पास...तोहि सोबावैं, खबावैं और तोरे गोदिया मा सोवें।बिना नींद के लाने भोपाल सही रहा आपन, जहां मर्जी आवे फटफटिया उठाके निकर लो कौनो से मतलब नहीं। हेने तो सब कम जिन्दा टाइप लोग हैं,  कमरै मा घुसे रहो ससुरा, अगर देर-अबेर कबहुं मन होईयो जाय तो मन मार के चुपार साधे कुरए रहो हियें दस बाई दस के कोठरिया मा। कक्का प्रेम त्रिपाठी भी तो गांव बसि गे हें आजकल। रोहित भाईयो तो आपन दिल्ली निकल लिहिस ही। औ बलम बिरजुआ भी हुअने मौज काट रहा है। ई सब आपन करेजा आंय, जितने किलोमीटर दूर अब हैं ससुरे उतनेन धंसे हैं करेजा मा। भोपाल रहत औ ई सब भाई , तो वीआईपी रोड के सैर के साथ कल के सकार मनुआभान के टेकरी मा होत सौ पर्सेंट। मौज आय जांय खां रहा है। ऐसन बहुत मजा होत रहि हुअन अब हेने औरंगाबाद के खालीपन मा भी डेढ़ साल बाद सुकून मिलन लाग है। वैसे असली मौज और आनंद के चैला तो ऐसने लिखे के बाद उनरत हैं भाई।देखो छह बज गवा है गुरु तुम आई रही हो तो आ जाओ निंदिया रानी नहीं ता हियन छते मा कमरवा के बहिरे सूरज निकरें तक खड़े रहब समझो। मान जाओ अब्बे देखो कौनो गली-घाट ता नहीं छोड़ेन तुंहरे खातिर निंद्रा महरानी...किताब, अखबार, टीवी, संगीत, कागज, कलम, इंटरनेट सब कर डारेन यार, और अंतिम मा या फेसबुक औ ब्लॉग...अब तो आई जा रे निंदिया

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