मेरी आवारगी

एक बेरंग तस्वीर...! मेरी आवारगी !

ये तस्वीर नहीं तकदीर है हमारी
जब 2013 चुकने को है, सोचता हूं क्या खोया इसमें और क्या हासिल, तो बस यही बेरंग तस्वीर दोनों दशा में सामने आती है। इसे बनाने में तो मुझे महज पांच घंटे ही लगे, लेकिन इसमें रंग भरने की नाकाम कोशिश ने जिन्दगी के पांच साल चाट लिए। 

!! 'आवारा' ये तस्वीर ही तकदीर बनकर उभरेगी, वो तदबीर जिससे हमने पी है तेरी आंखों की मधुशाला। कसम जिन्दगी की ईमान बदल डाला..आवारगी मजहब अपना, ओढ़ी हमने फकत इश्क की दुशाला...हां वही हाला !! 

फिलहाल ये साल उतना ही पीड़ादायक रहा जितना सुकूनदेय। अम्मा इस साल एकदम ठीक रहीं ये सबसे अच्छा है। 2012 अम्मा और हम सबके लिए बहुत कस्टदायक गुजरा था। अभी भी वो मंजर याद करके रोयें सिहर जाते हैं। इस साल मेरी नन्हीं जान फुलौरी को चलते देखना और लम्बी-चौड़ी बातों वाली गुल्लू का उतना ही लम्बा (आठ साल की हो गईं बिटिया रानी) होना ऊर्जाभरा और राग देने वाला है। छुटकू एक साल का हो गया यकीन नहीं होता, वक्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। 

जैसे देश के ऊर्जावान और अनमोल नगमे काल के गर्त में जाने से भारी नुकसान हुआ वैसे ही अपने भी कुछ लोग खर्च हो जाने से बेहद पीड़ा के पल मिले। 

सबसे सुखद रहा जमकर घुमाई, पढ़ाई और लिखाई। अभी ठीक-ठीक तारीख कहना तो मुश्किल है, मगर नए साल में पहला कविता संग्रह ( हे शब्दों मेरा आधार बनो ) और कहानी संग्रह ( जैसी देखी, वैसी कही ) आने की उम्मीद है। 
(प्रकाशक की मनाही से अभी प्रकाशन का उल्लेख करना संभव नहीं है)

अपनी जिन्दगी का भोगा राग-वैराग,  अनुराग और अब तक का सारा हिसाब-किताब भी शब्दों के सहारे किताब की शक्ल ( मेरी आवारगी ) में उकेरने का काम जारी है। हालांकि इसमें अभी वक्त है, मगर थमचुकी ब्लॉगरगिरी फिर शुरू हुई है। ब्लॉग को जनवरी 2014 से रीलांच करने जा रहे हैं। 

अब कहां जाता है गमेगुरबत में जिन्दगी का सफर ऐसी बात बिल्कुल नहीं हमें पता है आवारगी का ठौर, ठीक वहीं ले जाएगा जहां हमें जाना है। तो आवारगी बुलंद हो और रूहों को मौला सुकून दे।
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( वैधानिक चेतावनी- कृपया तस्वीर को लेकर अपनी-अपनी जिज्ञासा शांत रखें और फिजूल कयास लगाकर कमेंटबाजी करने से परहेज करें। धन्यवाद ! )

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