मेरी आवारगी

अब एक नशा काफी है...आवारगी तो अलविदा मेरे महबूब


जीने की तलब में अब तुझसे अलग हो रहा हूं मेरी जान। पिछले 18 सालों से तूने हर होश में साथ निभाया है। लवों को चूमते हुए उनका रंग भले छीना हो, उन्हें प्रेम की पहली मनुहार (चुंबन -आलिंगन) तुमने ही सिखाया है। धुआंबाजों के लिए तुम वो सुकून हो मेरे मोहतरम (सिगरेट), जिससे ऊर्जा ही नहीं, बल्कि जीने के लिए धुएंभरी सोंधी सांसें भी मिलती हैं।
अब हर किसी से तुझे इश्क भी तो नहीं होता जानेमन और हर एक को तुझसे। क्योंकि तेरी मोहब्बत में आशिक खो जाता है। अब ऐसे इसकजादे भी कम हैं, जो हर हाल में तुझसे प्यार की बगावत बुलंद करने का माद्दा रखते हैं। शुक्रिया मेरे पहले मेहबूब तेरी पाक मोहब्बत की नवाजिस का। इन 18 सालों में बिना किसी चाहत के फकत चाहने के लिए तुम्हें दिल से सलाम। 
याद कर रहा हूं, तो सामने वो हंसी मंजर है जब गांव की गलियों में इसक बुलंद हुआ था तुमसे। उन अजीजों के साथ तेरी गंध साझा हुई थी, जो धीरे-धीरे दोस्ती की अगरबत्ती हो गई। उम्र के साथ-साथ रोजाना सुबह-शाम हर गली-घाट और चौराहों पर तुझे जलाने की बाध्यता बढ़ती गई। तू बचपन का प्यार था, जो जवान हुआ मेरी रगों में हर रोज और पाकीजगी के साथ..और आज 18 साल की बलखाती उमर में पूरे शबाब पर है। मेरी जान तुमसे बेवफाई का कोई इरादा नहीं है, मगर जिन्दगी से वफा निभाने के लिए अब तुमसे रुखसत हो रहा हूं। तुम तो जानती हो आवारगी की राह में जो भी आया आवारा ने उसे खुद से काटकर अलग करने में कभी गुरेज नहीं किया। तुम भी अब मेरे मजहब (आवारगी ) के आड़े हो तो प्रेम से अलविदा।
मेरा पहला प्यार हो तुम और उन प्रेमिकाओं की सच्ची सौंत। शहर छूट गए, प्यार करने वाले रूठ गए, घर वाले टूट गए मगर तेरे धुएं से हमने हर फिक्र को उड़ाया है। तूने कभी साथ नहीं छोड़ा सच्चे दोस्त की तरह हर लम्हे में संबल दिया और सम्भाले रखा, आज भी याद है अस्पताल की वो सुइयां और बोतलें जो उस गम्भीर बीमारी में एक माह सैकड़ों बार लगीं, उस आईसीयू के कमरे में भी तेरी मोहब्बत मिल ही जाती थी। 
भोपाल में हुए हर सड़क हादसे के बाद खून और धुआं साथ-साथ बहाया हमने। उन्हें धुएं से नफरत थी बावजूद इसके तुझे ही चूमा न जाने कितने चुंबन गवां दिये इस फ़िराक में कि तुझे चूमना न छूट जाए। शुक्रिया मोहतरम उन शानदार दोस्तों का साथ देने के लिए, जो तेरे लिए पास आये और बाद में धुएं की तरह जज्ब हो गए जिगर में। सतना, रीवा, सागर, उज्जैन, शहडोल, पन्ना, कानपुर, लखनऊ, भोपाल, मुंबई, दिल्ली और औरंगाबाद सहित देश के वो तमाम शहर जहां मैं तुझे साथ लेकर घूमा, पल दो पल जितना भी ठहरा उन शहरों में... एक तेरे सहारे हमें देशभर के कई बौद्धिक चर्चा केंद्रों ( सभी स्थाई-अस्थाई पान-चाय गुमटियां ) में ठिकाना मिला, जहां चाय और तेरे साथ चिल्लर-चिंतन सम्भव हो सका। उन सभी दोस्तों, महबूबाओं, गुरुजनों, हमदर्दों और स्नेही भाइयों का धन्यवाद, जिन्होंने तेरे इश्क के नफे-नुकसान से हमें रूबरू कराया। उन सबका आभार जिनकी जेबें तेरे लिए ढीली हुईं, उनका भी जिन्होंने अपना धन धुएं में नहीं उड़ने दिया और सबसे ज्यादा उन सहारों का जो मुफलिसी में रोज तुझे चूमने के मौके दिलाते रहे।
 तेरे इश्क का भी गजब जलवा था, पेट के लिए कभी रोटी मिलने में देर भले हुई हो तू हमेशा हर जगह समय पर ही उपलब्ध रही। न जाने कितने दिन और रातें फकत चाय और धुएं में तेरे सहारे काटी हैं, कभी पता ही नहीं चला तुझे लोग बदनाम क्यों करते हैं। तुम तो ठीक वैसी ही हो अन्दर-बाहर से कोई फरेब नहीं। धुआं ही तो देती हो हर चुम्मे में और वही बाहर आता है, करेजे में तेरे प्यार के निशां आज भी सहेज रखे हैं। कभी सुर्ख लाल रहे मेरे होंठ (जिनसे प्रेमिकाएं भी रश्क करती थीं) उनमें भी तूने अपना रंग घोल दिया है, शुक्रिया मेरी जान कि अब ये लव किसी मासूक के लिए रश्क करने लायक नहीं छोड़े तूने। 
मुफलिसी के हर दौर में एक चाय के साथ तुमने ही तो अपने लो बजट में सहारा दिया है, वर्ना चंद सिक्कों के लिए यहां कितनी मोहब्बतें कुर्बान होती देखी हैं हमने। सोचता हूं अब रात की तन्हाई में शब्दों के इतर कोई साथ न होगा, फिर खयाल आता है कि तेरी यारी (चाय) तो साथ निभाएगी ही। 

।। अब तुम्हें इस कदर घोला है रूह में कि धुआं तेरा जिंदगी भर नहीं जाएगा।। आवारगी के हरम में 'आवारा' तेरे जाने के बाद भी धुआंबाज ही कहलाएगा।। मैं फक्र से कहता हूं तुझे जीने वालों से तू मोहब्बत करती है जानेमन टूटकर, कोई नशा जिंदगी का तुझ सा सुकून नहीं दे पाएगा।। तुझ पे कुर्बान-ए-जान...मेरी पहली मोहब्बत अब ये दिल तेरा वफादार न रह पाएगा।। इस आखिरी कश के साथ अलविदा जानम कि दर्द तेरा तुझे चाहे बगैर कौन समझ पाएगा।। 
      

ये आखिरी है अंजाम तेरी मोहब्बत का।
तेरे इश्क की नवाजिस के लिए शुक्रिया




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