मेरी आवारगी

फिर एक गद्दी की खातिर जनता लूटी जाएगी.

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सत्ता के गलियारों में अब धुंध लगी है उड़ने,
फिर एक गद्दी की खातिर जनता लूटी जाएगी।।
महज चुनावी वादों से वोट खसोटे जाएंगे,
वही रटा सा राग एक तकदीर सवंर जाएगी।।
बीतेगा जब ये काला रण तो तदबीर बदल जाएगी।।
गांव वही होंगे लेकिन हरिया की लाजो भूखी ही मर जाएगी,
बारिस में टपकी छप्पर से नेताओं के वादे रिसते जाएंगे।।
किसी खाप की सूली में फिर सोनी बिन ब्याही मर जाएगी,
बिरजू की खड़ी फसल फिर बिन पानी मुर्झाएगी।।
ठाकुर के खेतों से नहर नहीं अब जाएगी,
 हरिया बीए पास नहीं है तो सरकारी नक्शे में नहर वहीं बह पाएगी।।
महज चुनावी वादों में ही तस्वीर बदल पाएगी,
एक नतीजा इतना होगा तब अगली बारी में जनता जीते प्रत्यासी को भर मुंह गरियाएगी।।
वहीं सुलगता होगा चूल्हा, फिर बड़की भौजी रोटी चार बनाएगी।।
खाकर हरिया वही कलेवा खैनी मलता जाएगा,
फिर भीकू के दरवाजे राजनीति बतियाएगा।।
अबकी मेन चुनावों में वोट कहीं ना जाएगा,
खद्दर और सफेदी में फिर हरमन लुट जाएगा।।
आवारा नई तमीजों के वादे में बड़कू फिर वही कमीजें पाएगा....
वही रटा सा राग एक तस्वीर बदल जाएगी...एक गद्दी की खातिर जनता लूटी जाएगी।।।
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