मेरी आवारगी

राजनीति गरमाई है...नई पार्टी आई है

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राजनीति गरमाई है दिल्ली में 'आप' या 'आप'में दिल की तस्वीर उतर आई है।।
 कांग्रेस समझ न पाई है, मोदी-मोदी रटते रह गए सरकार नहीं बन पाई है।।
हवाबाज होते इतने तो वो लहर कहे धराशाई है, 
मीत तुम्हारे जहां रहे वहीं मुखौटा लाई है।। 
जेहन जगा है नींद उड़ी है अब मम्मी की सामत आई है।।
पहले जिसको सुई कहा था, वही कटार बौराई है।। 
संभल-संभल कर कदम बढ़ाते जनता कहां पचाई है।।
ई राजनीति के सर्कस में सब उथल-पुथल ही छाई है, 
'आवारा' एक मदारी था अब सबने मास्टरी पठवाई है।।
जनता के पैसों में ससुरा सबने चाटी खूब मलाई है, 
गद्दी नहीं विराजेंगे सीट जो सब न गहाई है।। 
कल की मुनिया ने रसूखों की हरमुनिया खूब बजाई है।। 
अब देखो सत्ता के रण में नई पार्टी आई है...नई पार्टी आई है।।
समझ नहीं पाए हरिया कक्कू क्यों छाई इतनी मोटाई है, 
जब 'चोर-चोर मौसेरे भाई' तो बासे भठ्ठों में कहे लड़ाई है।।
अब गरज-बरस मत बरखा-बिजली सबकी एक दवाई है, 
जनता के पैसे की फिर हुए चुनावों में होनी ठसक धुलाई है।।
कहें सुलगकर बिरजू भैया जमकर हियां खिचाई है, 
अबके निपटे हैं ढंग से तो इनपे बन आई है।।
राम-राम रटते हैं और प्रजा बहुत चिताई है, 
कब गद्दी बैठोगे राजा तुम्हरी हवा नहीं चल पाई है।। 
जनता के पैसे हैं तो लूट- खसोट ही भाई है, 
करवा लो अबकी सभी चुनावों में हजामत बने बधाई है।।
उसी सुई के लौह तत्व से समुराई बन छाई है, 
सत्ता के भीषण रण में अब नई पार्टी आई है
...झाड़ू गजब लगाई है...राजनीति गरमाई है।

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