मेरी आवारगी

यकीन में घुला महीन फरेब


इससे पहले की खाक हो जाऊं
राख मेरी हवा में मिले
यकीन में घुला
महीन फरेब का धागा सुलझा जाना
फुर्सत मिले तो आ जाना
 जेहन में डूबकर गाया था तुम्हें
हो अगर मुनासिब
तो फिर गीत सा मुझे गा जाना
शौके इश्क नहीं था वो
 न भूख आजमाने की
महज खुशबुओं का असर ‘आवारा’
अब मजारे-इश्क में बसर
बस सिफर से सफर हां सफर जिंदगी
...सफर जिंदगी

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