मेरी आवारगी

तुझे भी गले से लगा लूँगा

जिंदगी तू बगावत मत कर
कि कभी तो जीने दे जीभर।
तेरे हरम में जो नसीब नहीं,
वो कसक क्यों चुभाती है ?
कितना रूठेगी मेरी जान
और कब तलक ?
कभी तो आएगी
ठहरकर आगोश में मेरे !
'आवारा' छीनता आया हूँ,
हर ख्वाब अपनी आँखों का।
तुझे भी चुरा लूँगा, ठहर जरा
अभी तो नशेबाज हुए हैं तेरे।
बेसबर मत हो कि अभी करीब
मत आ, मुफीद होगा जब वक्त
तुझे भी सीने से लगा लूँगा।

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