वो बहारें जो तेरे दामन से लूटी हैं
हमने अब फिर न लुटा पाओगे,
रश्क करते रहो इश्क से चाहे जितना
अब नया कहां से लाओगे।
आशिकी हमसे ही सीखी है तुमने,
जब भी नाम लोगे किसी गैर का,
लवों पे मुझे ही ताजा कर जाओगे।
जाने भी दो हमदम थाम लो
अगर हाथ किसी का तो क्या,
वो पहली छुअन कहां भुला पाओगे।
जब भी आयेंगे होंठ करीब कोई
वहां आवारगी की मोहर लगी पाओगे।
न भुला सकोगे वो गुजरी हसीन शामें,
निकलोगे सड़कों पे मेरी हलचल से बहल जाओगे।
तुम अब क्या नया करोगे मोहब्बत में मेरी जां,
जो भी सीखा हमसे बस वही बांटते रह जाओगे।
हमने बटोरी है तन्हा रातों की खुशबू,
धुंधले सवेरों की गर्द, उदास कतरनें बीते वक्त की,
कुछ अधूरे ख्वाब, धीरे-धीरे झूठ होता सच,
आंख से टपके मोती और तेरी आंखों का नूर...
कर लो जोर-आजमाइश ये बौछारें छू भी नहीं पाओगे,
तुमने जिया ही नहीं मुझे जीभर के जानेजां।
जो भी बटोरोगे नये महीन फरेबी धागों से,
वहां भी उलझी हुई मेरे सच की लकीर साफ़ झलकाओगे।
रहने भी दो नाकाम कोशिशें न करो, '
आवारा' बुलंद जितना भी करोगे बगावत
हमसे उतना ही करीब आओगे।
तुम तराश लो हुनर लाख अपना,
मगर नया सा इश्क कहां से लाओगे।
वो छुअन, वो तपन, वो महक,
वो कसक...सब तो लुटा बैठे हम पर...
अब बाजारे-इश्क में उधार ही चलाओगे....।
तुम कर्जदार हो हमारे…थे और रहोगे आगे भी,
फक्त एक खोटी चवन्नी से ताजगी इश्क की ख़ाक खरीद पाओगे।
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