मेरी आवारगी

!! मोहब्बत में बदनाम होना अभी बाकी है !!

!! 'आवारा' मौज में है 
आवारगी की मेहर ही काफी है, 
कोई आए न आए हरम में मेरे 
दर्द का गुबार बाकी है, 
अशरार अधूरे हैं बिन तेरे हमदम
कि इश्क की आह अभी बाकी है !! 
वो जो अधूरा रह गया,
गर्दिशे-जमाने में पलकों पे थमा.…  
'आवारगी मुकम्मल' का ख्वाब... 
हां वही...बस वही ख्वाब अभी बाकी है, 
न जा ठहर तो जरा लुटने-लुटाने को 
हंसी रात अभी बाकी है !! 
उफ़ कि क्या तासीर है तेरी, 
मोहब्बत में नाम तो हुआ ही नहीं...
फकत नशेबाज हैं तेरे, 
मेरे मासूक तू रुका क्यों नहीं
इश्क में 'आवारा' का बदनाम होना...
अभी बाकी है...हाँ बाकी है !!

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