मेरी आवारगी

"ये तमाशा महंगा है बाबू साहब जिंदगी चुक जाती है"

अपने झुनझुने से लिया एक दृश्य
मेला हो और मौत का कुआँ न देखने को मिले तो मजा नहीं आता। बचपन से जितने मेले देखे झूलों के बीच मौत का कुआँ जरूर देखना बनता था। औरंगाबाद में नवरात्र पर लगे कर्णपुरा मेले में मौत का कुआँ देखा गया। बचपन की हजारों यादें ताजा हो गईं। अजीब होती है पेट की आग किसी भी हद तक गुजरने को मजबूर कर देती थी। यहाँ उसी पुराने तेवर-कलेवर के साथ कुछ छोकरे और छोकरियों का करतब देखने को मिला।
   लकड़ी से बने कुआँ नुमा पथ पर भागती मोटरसाइकिल और कारें। ये अद्भुत संतुलन और रोजाना रियाज का परिणाम है। भागमभाग के बीच उनका आपस में न भिड़ना आपको हतप्रभ कर देता है। उसी समय बनाया गया एक वीडियो इस पर साझा कर रहा हूँ। जिंदगी की इस दौड़ में ये भले ही पीछे हों लोगों के मनोरंजन के लिए जान जोखिम में डालने का जज्बा आपको  सिखाता और दिखाता है कि जिंदगी में हर पेशा केवल पैसा कमाने के लिए ही नहीं होता। किसी काम में हुनरमंद का हुनर मेहनत और ईमानदारी से ही सामने आता है।
 
मौत के कुओं में बाइक और कार दौड़ाती ये लड़कियाँ इसके लिए हल्के नशे का सहारा लेती हैं। आपको शायद ये जानकार आश्चर्य हो मगर बिना नशे से सुबह से देर रात तक लकड़ी के पटरों से बने कुएं पर गाड़ी दौड़ाना दिमाग को चकरा देता है। इसीलिए दिमाग को नशे से ज़रा सुन्न करके बेहिचक उस शुरूर में मौत का खेल आपको अपलक झपकाए देखने को मिलता है। उन गाड़ी दौड़ाने वाली लड़कियों से जब बात की गई तो उनके मुंह से आ रही शराब की बू ने मुझे आश्चर्य चकित जरूर किया मगर उनकी जीवटता और इस अजीबोगरीब जीवनशैली पर जरा सा नाज हुआ और अपार दुःख।
   
  बाजार ने सबकुछ अपनी चपेट में ले लिया है। ये मनोरंजन के खेलों ने भी आधुनिक तकनीक की पहल में पुराने खेलों को जहाँ लचर अवस्था में ला दिया है, वहीं उनके सामने पहले से ज्यादा आकर्षक होने की चुनौती भी दी है। मेला में 2 से 4 रोज घूमकर जो पता चला वो ये कि इन तमाशबीनों की खानाबदोश जिंदगी बड़ी गर्द भरी है। सालभर मेलों वाले राज्यों का दौरा करते हुए ये लोग मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और हरियाणा सहित दिल्ली सबसे ज्यादा घूमते हैं। इन्हें पैसा कमाने और पेट पालने की फिकर में अपनी पूरी दुनिया समेट लेनी होती है। वह भी इन्हीं की तमाशबीन साथियों के साथ।
  
  ये कुछ धंधे शायद ऐसे हैं जो जिंदगी को पूरी तरह बदल देते हैं और ये बदलाव कष्टप्रद होता है। आम जन-जीवन और शैली से लगभग कट जाने के बाद आप उसमें चाहकर भी घुल नहीं पाते और जीवन भर इस खानाबदोश अंदाज को ही जीना होता है। ये बहुत हिम्मत का काम है अपने परिवारों को साथ लेकर जगह-जगह फिरना और लोगों के मनोरंजन के लिए जान दांव पर लगाना                         
    आमदनी और मुनाफे का गुणा-गणित अब इससे ज्यादा घाटे का क्या होगा कि धंधे के कारण आपकी दुनिया ही बदल जाए। आप यहाँ के होकर भी यहाँ के नहीं रह जाते। जो समाज आपको देखकर तालियाँ बजाता है वही समाज अपने बीच में आपको रखने में असहज महसूस करे। ये वो दर्द है जो बयां नहीं होता मगर है। जब मैंने उन लड़कियों के समूह से बात (बड़ी मिन्नतों के बाद वो कुछ बताने को राजी हुईं ) की तो उन्होंने कहा कि "ये तमाशा बड़ा महंगा है बाबू साहब साला इसी में जिंदगी खर्च हो जाती है "। इसके आगे मैं बस शांत रह गया न कुछ बोल सका और न ज्यादा सुनने की शक्ति रह गई। अभी एक घंटे पहले जो छोकरियाँ बाइक दौड़ा रही थीं उनकी आँखें बेहिसाब छलक रही थीं....!!

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