तुम देह की नहीं आत्मा की जरूरत हो, तुम्हें ओढ़ने के लिए तुम्हारे जिस्म
का लिबास नहीं रूह की रूहानियत का रंग चाहिए, तुम्हारी छुअन जब जेहन का
पोर-पोर बहती हवा से महसूस करता है। मुझे यकीन हो जाता है तुम यहीं हो मेरे
आस-पास। जितने कम समय में तुमने कजरी आँखों से मेरे मन को छुआ है, उतने
समय में तो शायद तुम्हारी आँख का कजरा भी न धुलता होगा। किसी बाग से अलग हो
गई सूखी हो चली बेल को हरियाने के लिए जो अमृत चाहिए होता है न , तुम वही
हो। जिंदगी के उजियारे के लिए शुक्रिया।
मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गांव जसो में जन्म। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में 'मास्टर ऑफ जर्नलिज्म' (एमजे) में स्नातकोत्तर। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में मुख्यधारा की पत्रकारिता। लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए क्रिएटिव राइटिंग। इन दिनों स्वतंत्र लेखन में संलग्न। बीते 15 सालों से शहर दर शहर भटकने के बाद फिलवक्त गांव को जी रहा हूं। बस अपनी अनुभितियों को शब्दों के सहारे उकेरता रहता हूं। ये ब्लॉग उसी का एक हिस्सा है।
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