मेरी आवारगी

तुम जीवन सा बहना मेरी आंखों में, यहां मृत्यु का भाव नहीं है.

साभार; गूगल

तुम जीवन सा बहना आंखों में मेरी, यहां मृत्यु का भाव नहीं है.
भाव-विहल हो अतिरेकों का झरना, जिनमें अब वो धार नहीं है
मानव होकर रिस-रिस पशुता को जीना, ये कोई व्यवहार नहीं है
पोथी पढ़-पढ़कर अब तक जो जाना, ये तो वो संसार नहीं है

सीमाओं के पार है जाना, संभावनाओं का क्यों बाजार नहीं है.
मैं कब तक ठहरा रहूं यहां पर, क्यों ये धरा-गगन तैयार नहीं है.
जिसे बिलखते-रोते देखा, क्या हंसी से उसको प्यार नहीं है
लगी भूख पर जो पानी पीते, क्या उनका कोई संसार नहीं है.

ऐसा रिस-रिसकर जीना, क्या अब जीवन में वो सार नहीं है.
जीवन बहते जिसने न देखा, क्या वो जीना बेकार नहीं है.
जियो धरा में हवा सा बहते, क्यों तेरा मन तैयार नहीं है.
क्यों ऐसी जड़ता में खोए , क्या आजादी अंगीकार नहीं है.

जीवन वही जो तुमने पाया, रंगों पे क्यों एतबार नहीं है.
कितना और बिलखना-रोना, मझदारों का आधार नहीं है.
किसी कलम पर यकीं तो कर लो, क्या ये पतवार नहीं है.
मत नींद बेचकर खुशी खरीदो, क्या सोना अधिकार नहीं है.

नरक यहीं और स्वर्ग यही है, क्यों फिर जीने में झंकार नहीं है.
धनुष हाथ में थाम तो देखो, क्या सत्य का कोई भार नहीं है.
तुम में भी अर्जुन सा बल है, प्रतिंच्या में क्यों टंकार नहीं है.
खोजोगे तो मिल जाएंगे उत्तर, मन में तुम्हारे वो हार बसी है.

पार करो ये जीवन-धारा, मत कहना पास में वो पतवार नहीं है.
निर्बल बहुत हुए क्षण, उठो कि अब निर्बलता स्वीकार नहीं है.
जड़वत हो यूं मरकर जीना, ये झरने का गुणवत ब्योहार नहीं है.
एक हलचल को लेकर सोना, क्या ये जीना सदाबहार नहीं है.

तुम जीवन सा बहना मेरी आंखों में, यहां मृत्यु का भाव नहीं है.
कब तक गीली आंखों में जीना, नहीं ये जीवन से प्यार नहीं है.
मृत्यु का उत्सव हो हर घर में, क्यों ऐसा कोई विधान नहीं है.
उठो, मरो मत मानव होकर, क्या रूहों में जीवन का संचार नहीं है.
- आवारा

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