मेरी आवारगी

हैप्पी बर्थ डे फुलौरी

वक्त कब पंख लगाकर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता। आज अपने लख्ते-जिगर पूरे दो साल के हो गए हैं। ये आफत की पुड़िया जब हमारे घर आई थी, सब अपने-अपने दुःख में भूले थे। मगर इसके आते ही जो बहार आई उसका कोई तोड़ नहीं। ये नन्हीं करामाती इश्क की बून्द जब हमारी दुनिया में आई कुछ नया गुल खिला। सबको हंसने का न सिर्फ बहाना मिला। जीने का भी हुनर संवर गया। एक तो आवारा का अपना मक्का (भोपाल) छूट गया था। ये नया शहर (औरंगाबाद ) नई जगह, ऊपर से जिंदगी में आखिरी बार वो खोने का एहसास जिसे पाना अब सम्भव न था।
कहते हैं न वीराना कितना भी घर कर जाए बारिश की आस नहीं छोड़नी चाहिए। ये जीवन का नन्हां अंकुर जब फूटा कसम खुदा कि इसकी हंसी में दिल का सारा दर्द गायब हो गया। उन एक जोड़ा आँखों के हमेशा के लिए छूट जाने और रूठ जाने का गम....फुलौरी के आने के बाद न जाने कहाँ दब गया पता ही न चला। इसकी दो नन्हीं हथेलियों के बीच जब अपनी अँगुलियों के कसे जाने का रोमांच महसूस करता हूँ, तो कोई दर्द खीचने वाला करिश्माई सीरिंज याद आता है। जैसे सारी जड़ता, दुःख, अकेलेपन और आत्मा की तपिश को किसी ने एक पल में खीच लिया था।
वो मखमली एहसास था, कुछ रूह के अंदर लगातार धड़कने का। सब शांत और ठंडा हो गया था जी इतना हल्का सालों से नहीं हुआ था। इसका आना बस एक अलहदा इश्क की तरह रोमांचित कर देने वाला पल था। किसी भूखे जो जब खुराक मिल जाती है वो कैसे झूम उठता है पेट भरने पर।
उसके फूल की पंखुड़ी से नाजुक होंठ जब हंसते थे तो लगता था, के जाड़े में धूप खिल गई है। पैदा भी गजब की आंकड़े वाली तारीख को हुआ मेरी जान। जो लयबद्ध सी है 10। 11। 2012।  देखते-देखते फुलौरी एक साल के हुए और उनका पहला जन्मोत्सव गाँव में बड़े धूम-धाम से मनाया गया। दादी के चले जाने के बाद सब अस्त-व्यस्त हो गया है।  इस बार इनका जन्म दिन दिल्ली में ही मनेगा। छुटकू पूरा शैतानी का पिटारा है और चलने-फिरने तो एक साल में लगा है अभी अल्फाज ज़रा कम फूटते हैं जबान से। फिर भी मम्मा, पापा, चाचा और बब्बा उचार लेता है।
फोन पर कभी मर्जी आए तो अपनी फ़ारसी में बतकही कर लेता है। एक नंबर के घुमक्कड़ हैं साहबजादे। गाँव में जब-जब वक्त साथ गुजारा, मजाल कि बाइक दिखे और बिना सवारी किये बाबू मान जाएं। कार से प्रेम तो लड़का अपनी आत्मा में लेकर पैदा हुआ है। न जाने किस जन्म का रईश है ससुरा। कार इनका सबसे ज्यादा पसन्दीदा शगल है और उसके लिए जमीन पर लोटने से लेकर खाना न खाने तक सारी कलाएं भाई को आती हैं।
इस बार मिलने की सोचकर भी मिल नहीं पाये। नौकरी के जंजाल में सब गड़बड़ हो गया है। मेरी जान जल्द मिलेंगे तुमसे। फिलवक्त मौज करो तुम्हें जन्म दिन की शुभकामनाएं। नन्हीं जान तुम्हारी मुस्कान पर अपनी जान कुर्बान।
इसका बीता जन्म दिन और औरंगाबाद से सतना की यात्रा की बीते साल वो आज की ही रात याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। न जाने कैसे गैस ने तबियत का वो हाल किया था कि जलगांव के स्टेशन पर ही ढेर हो गया था। भला हो स्टेशन मास्टर और बाकी स्टाफ का जिन्होंने मेरी जिद पे न केवल ट्रेन रुकाकर मुझे उसी ट्रेन से सतना रवाना किया, बल्कि तुरन्त अस्पताल ले जाकर दवा भी दिलाई। मैं जिद पे अड़ा था कि कल मेरे जिगर के टुकड़े का जन्म दिन है जाऊंगा तो इसी ट्रेन से और वो लोग इस जिद पर कि पहले अस्पताल चलो। ट्रेन आने में समय कम था इतनी जल्दी दवा लेकर स्टेशन लौटना सम्भव न था। भाई लोगों ने पूरे आधे घन्टे दवा होने तक ट्रेन रुकाकर रखी, ये छुटकू के पहले जन्म दिन से जुड़ी सबसे यादगार घटना है। बहरहाल जब तलक जिंदगी का कर्ज चुक नहीं जाता मौत अपना हिसाब नहीं पूरा कर सकती।
बीते दिनों दादी के स्वर्गवास  समय सितम्बर में लिया एक चित्र
फुलौरी अपने टैडी के साथ
मस्तमौला छोरा
ठंडा पसंद है अपुन को भिडू
गुल्लू और फुलौरी की यादों की फुलवारी
गाँव के घर का आँगन और शैतानी के बादशाह

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