मेरी आवारगी

हाँ मैं शून्य में हूँ....

गूगल से साभार 
तुम्हारी गिलहरी सी गोल आँखें जब उस रोज कुहासे की ओस में भीगी थीं, तब एक बून्द पलकों पर आकर ठहर गई थी.....तुम्हें पता है मैं उस एक पल में न जाने कब से ठहरा हूँ। तुम्हारी उन गीली आँखों में जिंदगी पसीज गई है। ये ठहराव कुछ वैसा ही है जैसे उस एक पल में योगी समाधिस्थ हो जाता है, जब समय रुक सा जाता है। हाँ मैं उसी शून्य में हूँ अपलक तुम्हें देखने का सुख सतत आत्मा से भोग रहा हूँ। इस कुंहासे में जीवन का मय पोर-पोर से अंदर सिमट रहा है। वो छुअन रूह में घर कर गई है, तुम्हारी हथेलियों का जादुई स्पर्श....मेरी आत्मा की लगातार जारी किसी खोज यात्रा का अंत है। तुम्हारा मिलना एक पूरक अहसास है....अनंत पड़ावों को पार करते हुए जब प्रेम के दर्शन होते हैं जीवन योग हो जाता है। यात्राओं का अंत नहीं है और इस समाधि बोध की अवस्था से आरम्भ हुआ प्रेम तुम्हारी आँख की पुतलियों पर आकर ठहरा है। कहो तो सदा रहोगी न मेरी आँख का नूर बनकर...तुम्हारा आवारा

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