मेरी आवारगी

तुम्हें जन्म दिन मुबारक हो मेरे सवेरे

तुम जीवन की सबसे लम्बी काली रात के बाद का वो सुनहरा सवेरा हो जिसके लिए मैं नाउम्मीद हो चला था। आज तुम्हारा जन्म दिन है और कोसों दूर बैठकर मैं शब्दों की कूची से जिंदगी की किताब का पन्ना रंग रहा हूँ। जीवन के बेरंग से कैनवास में तुमने फिर वो रंग भरे हैं जिनसे मैंने किनारा कर लिया था। तुम्हारी कजरी आँखों की कसम उन्हें पहली बार देखकर खुद को चाहने का मन हुआ था। तुम वर्षों से बंद पड़े कपाट के उस पार थे पंडित, जिसे खोलने के अपने वजूद को का तिनका-तिनका फिर जोड़ना पड़ा है।
   जीवन के सारे रहस्यों के इतर प्रेम को समझने में ही शायद अपने कई साल खर्च हो गए। और कुल जमा पूंजी जो मैंने खोई वो भी प्रेम ही है और जो पा सका हूँ वो भी प्रेम ही है। तुम तक पहुंचकर ही ये शब्द अपना अर्थ पा सकेे कि हाँ मुझे तुमसे प्रेम हुआ है, जो बहती हवा में तुम्हारी मरमरी हथेलियों की छुअन मुझ तक लाता है.... बरसते पानी में जीवन को वो नमी देता है जिससे नए बीजों का अंकुरण होता है। मैं तुममे खुद को पाने की दृष्टि से ही शायद आगे बढ़ा था....ये वही अनंत यात्रा है जिसमें सदियों से रूहें चलती रही हैं अपने पूरक अंश की खोज के लिए।
    आवारगी में बिसरा जेहन जीवन के जिस सबसे खूबसूरत संगीत को सुनना गवारा न करता था, उन सुरों की तान ही तुमने ऐसी छेड़ी कि आवारा फिर ये गजल गुनगुना रहा है। कभी तुम्हारी आँख का आंसू न टपके और खर्चने से बढ़ने वाली मोहब्बत की दौलत से आबाद रहो मेरी जान। न जाने तुम कब-कैसे और कहाँ से आये हो...मगर तुम्हारे माधुर्य ने कड़वे वक्त में निगले निवाले भी मीठे कर दिए हैं। हम चलेंगे साथ-साथ कि फिर कभी तुम्हें पीछे मुड़कर न देखना पड़े। किसी उम्मीद के रंग फीके न हों इसलिए हम घोल देंगे सब एक कूची के सहारे जिंदगी के कैनवास में। तुम्हारी कजरी आँखों के कुछ चित्र मैने बनाए हैं उस दीवार पर जो सिर्फ तुमसे रंगी है....। तुमसे मिला रंग बस तुम्हारे लिए ही खर्च होगा जी। चलो अब इसे पढ़कर ज्यादा इतराओ मत....मुस्कराओ दो और कुछ भेज देना मुझे उस हवा के झोके से जो अभी तुम्हारे पास से गुजरा है।
एक बार और जन्म दिन मुबारक। तुम्हारे मिलने का तुमसे कोई आभार नहीं क्योंकि मैं खोज ही लेता हूँ देर-सवेर हर वो नूर जो मेरे लिए है।
-आवारा
चित्र साभार गूगल खोज

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