कल रात फिर सपने में
बूंद-बूंद टपकी तुम्हारी याद
कुछ अनमने से सवाल उठे
रूठे हुए वही दो-चार बोल
खोने-पाने का अधूरा ख्वाब
याद के चीथड़ों में लिपटा
दैवत्व से लबालब तुम्हारा प्रेम
इन पगडंडियों का अभागा पथिक
इक इन्तजार के वो सैकड़ों पल
जीवन से झरती वो इठलाती शाम
रात के सपने के अनकहे झगड़े
तुम्हारे हिस्से की जानलेवा चुप्पियाँ
मेरे भाग में आए हर उदास मौसम
सब बीत गए हो जैसे एक साथ
उस एक पल में पूरा जुग बीत गया
कितना सच लगा वो हर झूठा वादा
तुम्हारे साथ होने का एक अहसास
सब धुलकर साफ हो गया हो जैसे
नहीं ख़्वाब अधूरे नहीं होते अक्सर
पूरा कर जाते हैं जिंदगी का हिसाब
आवारा उनींदे में
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