मेरी आवारगी

किताबें / सफ़दर हाशमी



23 अप्रैल विश्व पुस्तक दिवस पर सफ़दर हाशमी जी की "किताबें"
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की।
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
सुनोगे नहीं क्या
किताबों की बातें?
किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,
कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती।
किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,
बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते।
किताबों में साईंस की आवाज़ है,
किताबों में रॉकेट का राज़ है।
हर इक इल्म की इनमें भरमार है,
किताबों का अपना ही संसार है।
क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे ?
जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे ?
किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

साभार: सफ़दर हाशमी की कृति दुनिया सबकी
से "किताबें" एक बाल कविता (kavitakosh.org)

-सभी चित्र : साभार गूगल बाबा से लिए गए हैं।

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