मेरी आवारगी

रोटी क्या तुम ही हो ?

चित्र खुद बनाई रोटी का खुद ही लिए 
रोटी क्या तुम हो वो 
जिसने धरती बिक जाने दी 
क्या तुमने ही जगीरें लुट जाने दीं 
क्या तुमने ही खजाने खाली किए
क्या तुम्हारे लिए लगे दौलत के अंबार 
क्या तुमने ही बेटी बिक जाने दी
क्या तुम्हारे लिए ही है सब हाहाकार  
क्या तुम्हारे टुकड़ों से बना वो हथियार 
मानवता जहाँ खोखली हो गई आकर
तुमने पेट खाली किये और किले ढहाये 
तुमने धर्म-कर्म सबको तोड़ा-मोड़ा 
हर गुनहगार ने सब रोटी के लिए छोड़ा 
सब बौने हो गए हों जैसे तुम्हारे सामने 
क्या भगवान क्या इंसान और क्या शैतान
पेट तो सबका शायद तुमसे ही भरता है 
भूख ही तो मिटाती हो तुम जज्ब होकर 
वो कौन सी भूख है जो तुमसे शांत नहीं हुई
तुम तो हर किसी के लिए एक सी ही हो 
तुम्हें पाने- खाने में खून बहाने का क्या काम 
तुम तो वरदान हो, फिर भी क्यों बदनाम हो 
जो इंसान न बनने दे नाहक गर्त में ढकेले
वो भला तुम कहाँ होगी, यूँ मुलायम और मीठी 
नहीं वो कोई और भूख होगी तुम्हारी नहीं 
नहीं वो कोई और आग होती तुम्हारी नहीँ 
तुम्हारी आंच में तो इंसान कुंदन हो जाता है 
तुम्हें बेगैरत इंसानों ने अपनी ढाल बनाया है 
हर जुर्म तुम्हारी गोलाई में भर देना चाहते हैं 
तुम्हीं से ज़िंदा हैं तुम्हें ही बदनाम करते हैं 
खुद बिक गए और तुम्हें बेईमान कहते हैं 
-रोटी और आवारा एक रोज बतकही में।

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