मेरी आवारगी

ये तुम्हारा प्रेम है...

ये तुम्हारा प्रेम है...पगले जो मुझे निकट महसूस करता है। मैं तो सारे बन्धनों से कब का मुक्त हो चला हूँ। विश्राम ही तुम्हें शक्ति देगा, जो तुम्हारी मुक्ति में सहायक होगी...अनंत में बहो, प्रेम को विस्तार देना सीखो। जब जगत का हर कण अपना लगने लगे समझना तुमने प्रेम की संपदा पा ली है। प्रेम शाश्वत है हमारा, तुम्हारा, सबका एक सा राग ही प्रेम का होगा, उसमें विभेद नहीं हो सकता है।
('प्रेम-वाणी' अभी रची जा रही है)
(2014 अप्रैल डायरी से)
चित्र : साभार हमारे झुनझुने से। एक शाम चाँद।

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