मेरी आवारगी

उदास शामों की बानगी

चित्र : हमारे झुनझुने से एक औरंगाबादी शाम
कई उदास शामों की बानगी
हाँ तुम्हारे गर्म हाथ का स्पर्श 
भीगे रुई के फाहे सी ठंडक 
तुम्हारी आँख की जादूगीरी
सिल्ली-सिल्ली लरजते होंठ
पानी में डूबे दो जोड़ा पैर
हवा में झूमती तुम्हारी लटें 
कील सा चुभता वो कंपन
तुम हवा में क्यों बहते हो
जब कभी खुलती है आँख 
तुम्हारी नमी मुझे भिगोती है 
न जाने कब भीगा था साथ
अब तक कमी महसूस होती है 
                -आवारा जज्बात


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